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‘मैदान’ और ‘बड़े मियां छोटे मियां’ ने मंडे कलेक्शन में तोड़ा दम! बटोर सकी बस इतने नोट

Maidaan vs Bade Miyan Chote Miyan: थिएटर्स में इन दिनों हिंदी फिल्मों की चाल ढीली नजर आ रही है. इस वक्त पर्दे पर ‘एलएसडी 2’, ‘मैदान’, ‘बड़े मियां छोटे मियां’ और ‘दो और दो प्यार’ जैसी हिंदी फिल्में मौजूद है. लेकिन कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अपना दबदबा नहीं बना पा रही है. ‘मैदान’ और ‘बड़े मियां छोटे मियां’ जो 11 अप्रैल को ही थिएटर्स में रिलीज हुई है.

अक्षय कुमार और टाइगर श्रॉफ स्टारर फिल्म ‘बड़े मियां छोटे मियां’ 350 करोड़ रुपए के बजट में बनकर तैयार हुई है. लेकिन रिलीज के 12 दिन बाद भी फिल्म अपने बजट का एक चौथाई भी नहीं निकाल पाई है. सैकनिल्क की शुरुआती रिपोर्ट के मुताबिक 12वें दिन भी फिल्म की कमाई महज 1 करोड़ रुपए ही रही. फिल्म के टोटल कलेक्शन की बात करें तो ये अब तक 56.55 करोड़ रुपए ही कमा सकी है.


‘मैदान’ की हालत भी खराब!
अजय देवगन की स्पोर्ट्स ड्रामा ‘मैदान’ भी थिएटर्स में खास कमाल नहीं कर पा रही है. फिल्म 250 करोड़ के बड़े बजट में बनी है और अब बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप होती दिख रही है. रिलीज के 12वें दिन तो फिल्म का कलेक्शन करोड़ का आंकड़ा भी नहीं छू सकी. शुरुआती रिपोर्ट की मानें तो 12वें ‘मैदान’ ने महज 80 लाख रुपए का ही कारोबार किया और इसी के साथ फिल्म की अब तक की कुल कमाई 36.40 करोड़ रही.


स्टार्स का वर्कफ्रंट
वर्कफ्रंट की बात करें तो अक्षय कुमार के पास फिलहाल कई प्रोजेक्ट्स हैं. वे ‘स्काई फोर्स’, ‘वेलकम टू द जंगल’ और ‘हाउसफुल 5’ जैसी फिल्मों में नजर आएंगे. वहीं अजय देवगन भी कई फिल्मों में दिखाई देने वाले हैं, इनमें ‘औरों में कहां दम था’, ‘रेड 2’ और ‘सिंघम अगेन’ जैसी फिल्में शामिल हैं. 

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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