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‘एलएसडी 2’ ने दूसरे दिन ही बॉक्स ऑफिस पर तोड़ा दम, चंद लाख में सिमटी ‘दो और दो प्यार’!

LSD 2 Vs Do Aur Do Pyaar: थिएटर्स में इन दिनों कई हिंदी फिल्में पर्दे पर लगी हुई हैं. मैदान से लेकर बड़े मियां छोटे मियां तक और दिबाकर बनर्जी की ‘एलएसडी 2’ से लेकर विद्या बालन स्टारर ‘दो और दो प्यार’ तक, सिनेमाघरों में दर्शकों को एंटरटेन कर रही हैं. हालांकि कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कमाल की परफॉर्मेंस नहीं दे पा रही है और इसका असर उसके बिजनेस पर साफ नजर आ रहा है.

दिबाकर बनर्जी की ‘एलएसडी 2’ का दर्शकों को लंबे समय से इंतजार था. रोमांस, ड्रामा और क्राइम फिक्शन बेस्ड ये फिल्म साल 2010 की एलएसडी का सीक्वल है. हालांकि रिलीज के बाद दर्शकों का फिल्म को खास रिस्पॉन्स नहीं मिल रहा है. 19 अप्रैल को रिलीज हुई फिल्म ‘एलएसडी 2’ जहां बॉक्स ऑफिस पर अच्छी ओपनिंग करने में नाकाम रही तो वहीं दूसरे दिन फिल्म का कलेक्शन और कम हो गया.


दूसरे दिन भी ‘एलएसडी 2’ का बुरा हाल
सैकनिल्क की रिपोर्ट की मानें तो पहले दिन ‘एलएसडी 2’ ने 15 लाख रुपए से घरेलू बॉक्स ऑफिस पर खाता खोला था. वहीं दूसरे दिन फिल्म की कमाई में कमी देखी गई है. वीकेंड के बावजूद ‘एलएसडी 2’ ने दूसरे दिन महज 12 लाख रुपए कमाए हैं. यानी दो दिनों में फिल्म सिर्फ 27 लाख रुपए का ही कलेक्शन कर पाई है.

वीकेंड पर बढ़ी ‘दो और दो प्यार’ की कमाई
‘एलएसडी 2’ के अलावा विद्या बालन स्टारर फिल्म ‘दो और दो प्यार’ ने भी 19 अप्रैल को ही सिनेमाघरों में दस्तक दी है. ये फिल्म भी कुछ खास बिजनेस नहीं कर पा रही है लेकिन इसकी परफॉर्मेंस ‘एलएसडी 2’ से काफी बेहतर है. पहले दिन ‘दो और दो प्यार’ ने 55 लाख रुपए की ओपनिंग की थी. वीकेंड पर फिल्म का कलेक्शन बढ़ा और इसने 85 लाख रुपए की कमाई की. इस तरह घरेलू बॉक्स ऑफिस पर फिल्म ने दो दिन में 1.40 करोड़ रुपए बटोर लिए.


‘दो और दो प्यार’ की स्टारकास्ट
शीर्षा गुहा ठाकुरता के डायरेक्शन में बनी फिल्म ‘दो और दो प्यार’ एक रोमांस-ड्रामा है. फिल्म में विद्या बालन के अलावा प्रतीक गांधी, इलियाना डिक्रूज और सेंधिल राममूर्ति भी अहम किरदार निभाते दिखाई दिए हैं.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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