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‘हीरामंडी’ में ऋचा चड्ढा की शानदार परफॉर्मेंस की पति अली फजल ने की तारीफ

Ali Fazal On Richa Chadha: संजय लीला भंसाली ने वेब सीरीज ‘हीरामंडी’ से ओटीटी प्लेटफॉर्म पर डेब्यू किया है. इस शो को दर्शकों से मिला-जुला रिस्पॉन्स मिला है. मल्टी-स्टारर सीरीज में मनीषा कोइराला, सोनाक्षी सिन्हा, अदिति राव हैदरी, ऋचा चड्ढा, शर्मिन सहगल और संजीदा शेख ने तवायफ का रोल प्ले किया हैं. वहीं इन सबके बीच ऋचा चड्ढा की एक्टिंग की खूब तारीफ हो रही है. ऐसे में एक्ट्रेस के पति अली फज़ल ने भी अपने सोशल मीडिया हैंडल पर पत्नी ऋचा की जमकर तारीफ की है.

अली ने अपनी पत्नी ऋचा की शानदार परफॉर्मेंस की तारीफ की
अली ने इंस्टा पर एक वीडियो शेयर किया है जो उनके हॉलीडे, पब्लिक स्पॉट और पर्सनल मोमेंट्स का कम्पाइलेशन है. इसी के साथ अली फज़ल ने लिखा, “केवल एक मूर्ख ही लज्जो को लेकर नहीं उड़ेगा!! (लज्जो चेक) आप सिंपली बेस्ट हैं और मैं खुद को बहुत लकी महसूस करता हूं कि मुझे आपके साथ इन पर्सन अपने नोट्स शेयर करने का मौका मिला.. हीरामंडी की इस जबरदस्त सफलता के लिए बधाई पार्टनर। आप उस स्टैंडर्ड से काफी ऊपर उठ गए हैं, जो आप हमेशा करते थे. जल्द ही फिर मिलेंगे! ऋचा चड्ढा!!” वहीं  ऋचा ने भी पति अली के इस प्यारे नोट पर रिएक्शन देते हुए लिखा, “आई एम लकी लकीएस्ट गर्ल अलाइव थैंक्यू.”

 


हीरामंडी में ऋचा चड्ढा को कोई और रोल ऑफर किया गया था
बता दें कि ‘हीरामंडी: द डायमंड बाजार’ में ऋचा चड्ढा ने लज्जो का किरदार निभाया था. हाल ही में एक इंटरव्यू में ऋचा ने खुलासा किया था कि भंसाली के प्रोजेक्ट में उन्हें एक दूसरा रोल ऑफर किया गया था जिसका स्क्रीन टाइम भी ज्यादा था, लेकिन उन्होंने लज्जो का किरदार निभाने का फैसला किया.

हीरामंडी में फरदीन, शेखर सुमन ने नवाब का रोल निभाया है
बता दें कि सीरीज में फरदीन खान, ताहा शाह बदुशा, शेखर सुमन और अध्ययन सुमन भी नवाब की भूमिका में है. इस सीरीज का ट्रेलर पिछले महीने की शुरुआत में रिलीज़ किया गया था और इसने उस समय में पहुंचा दिया जब तवायफें भी राज किया करती थीं. इस सीरीज के भव्य सेट और कास्ट के कॉस्ट्यूम ने भी खूब सुर्खियां बटोरी हैं.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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