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स्मार्टफोन में फिर आएंगी रिमूवेबल बैटरी , EU ने पास किया कानून, लेकिन… 

EU Pass New Law for Removable battery: बाजार में आज जितने भी स्मार्टफोन मौजूद हैं सभी में नॉन रिमूवेबल बैट्री आती है. यानी बैटरी को फोन से निकालने के लिए स्पेशल टूल की जरूरत पड़ती है. लेकिन अब एक बार फिर मोबाइल फोन में रिमूवेबल बैटरियां वापस आ सकती हैं. यूरोपियन यूनियन ने इस संदर्भ में एक कानून पास किया है और 587 मेंबर ने इस विषय में वोट किया है जबकि केवल 9 पार्लियामेंट्री मेंबर ने इस कानून को अपोस किया है. नए रूल को इसलिए पास किया गया है ताकि मोबाइल फोन कंपनियां ऐसे स्मार्टफोन न बेचें जिन्हें खोलने के लिए स्पेशल टूल की जरूरत पड़ती है. फिलहाल ये कानून यूरोपियन यूनियन में पास किया गया है और यहां के यूजर स्मार्टफोन की बैटरी को अब आने वाले समय में आसानी से बदल पाएंगे. 

अभी नहीं लागू होगा कानून

नया कानून आज से 3 साल बाद लागू होगा. यानी 2027 से यूरोपियन यूनियन में स्मार्टफोन में रिमूवेबल बैटरियां मिलेंगी. खैर अब ये देखना दिलचस्प होगा कि यूरोपियन यूनियन के इस फैसले पर स्मार्टफोन निर्माता कंपनियां कैसे रिएक्ट करती हैं. यूरोपियन यूनियन इस कानून को इसलिए भी लाया है ताकि ई-वेस्ट को कम किया जा सके और पर्यावरण को नुकसान से बचाया जा सके.

टाइप-सी चार्जर को लेकर भी पास किया है कानून

ऐसा पहली बार नहीं है जब EU ने मोबाइल के चार्जर या बैटरी को लेकर कानून बनाया हो. इससे पहले यूनियन पिछले साल यूएसबी टाइप-सी चार्जिंग पोर्ट से जुड़ा नियम पास कर चुका है. इस कानून की दुनियाभर में तारीफ हुई थी और भारत सरकार ने भी 2025 से सभी मोबाइल कंपनियों को फोन में टाइप-सी चार्जिंग पोर्ट देने के लिए कह दिया है. इस कानून का मकसद भी यूजर्स के खर्चे और इलेक्ट्रॉनिक कचरे को कम करना है.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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