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संसद भी है कास्टिंग काउच की चपेट में। कांग्रेस की पूर्व सांसद का बयान

नई दिल्ली: बॉलीवुड डांस कोरियोग्राफर सरोज खान के कास्टिंग काउच पर दिए बयान के बाद हंगामा मचा हुआ है। सब लोग इस पर टिप्पणियां करने से पीछे नही हट रहे है ऐसे में पूर्व कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी ने भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है।

“यह सिर्फ फिल्म उद्योग में नहीं है। यह (कास्टिंग काउच) हर जगह होता है और यह कड़वी सच्चाई है। ये कल्पना भी न करे की संसद या अन्य कार्यस्थल इससे बकचे हुए है। यही वह समय है जब भारत को खड़ा होना चाहिए और #MeToo भी कहना चाहिए।

वह कास्टिंग काउच पर बॉलीवुड कोरियोग्राफर सरोज खान की टिप्पणी का जवाब दे रही थीं। कास्टिंग काउच संस्कृति का बचाव करते हुए खान ने मंगलवार को कहा कि फिल्म उद्योग “कम से कम” नौकरियां प्रदान करता है और महिलाओं से बलात्कार के बाद महिलाओं को त्याग नहीं देता है।

तेलुगु अभिनेता श्री रेड्डी तेलुगू फिल्म उद्योग में कास्टिंग काउच संस्कृति के विरोध में अलग होने पर सांगली में एक पत्रकार के एक प्रश्न के जवाब में 69 वर्षीय कोरियोग्राफर ने टिप्पणी की। “यह प्राचीन काल से ही हो रहा है। कोई भी और हर कोई हर लड़की के साथ आरामदायक होने की कोशिश करता है। यहां तक कि सरकार के लोग भी ऐसा करते हैं। आप फिल्म उद्योग के पीछे क्यों पड़े हैं? कम से कम उद्योग रोजगार प्रदान करता है।

सरोज खान का यह जवाब सोशल मीडिया पर वायरल हो गया जिसके बाद उन्होंने इसके लिए माफ़ी मांग ली और कहा की अगर किसी के पास कला है तो फर वो क्यों अपने आप को बेचेगा।

यौन उत्पीड़न समाप्त करने के लिए ‘मी टू’ एक आंदोलन है। अमेरिकी अभिनेता एलिसा मिलानो ने महिलाओं को यौन उत्पीड़न और हमले के साथ अपने अनुभवों के बारे में ट्वीट करने के लिए प्रोत्साहित किया – जैसे ‘मी टू’ – लोगों को “समस्या की परिमाण की भावना” देने के लिए प्रोत्साहित किया गया।

Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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