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इजराइल में छिड़ी जंग पर फिलिस्तीन के सपोर्ट में उतरीं स्वरा भास्कर, लोगों को कहा पाखंडी

Swara Bhaskar on Israel Palestine Conflict: इजरायल और फिलिस्तीन के बीच चल रही जंग बद से बदतर होती नजर आ रही है. दोनों देशों के बीच शनिवार से ही युद्ध जारी है.  इजराइल पर हमास के हमले के बाद फिलिस्तीन-इजराइल इलाके में हिंसा की नई लपटें उठने लगी हैं.आकंड़ों के मुताबिक अब तक इजराइल में कम से कम 600 लोगों की मौत हुई है जबकि 1590 लोग घायल हुए हैं.

स्वरा ने दी अपनी प्रतिक्रिया 
वहीं इस हादसे पर लोगों के रिएक्शन भी आने शुरू हो चुके हैं सोशल मीडिया दो गुटों में बट चुका है. अब बॉलीवुड एक्ट्रेस स्वरा भास्कर ने अपनी अपनी प्रतिक्रिया दी है. 

उन्होंने अपने इंस्टा स्टोरी पर लिखा है कि अगर आपको तब शॉक नहीं लगा जब इजराइल ने फिलिस्तीन पर अटैक किया, जब इजराइलियों ने फिलिस्तीन के लोगों के घर तबाह किए और जबरदस्ती छीन लिए, फिलिस्तीन के बच्चों और टीनएजर्स को नहीं बख्शा, करीब 10 सालों तक लगातार गाजा पर अटैक किया और बमबारी की तो मुझे इजराइल पर हुए अटैक पर शोक मना रहे लोगों का ये कृत पाखंड भरा लग रहा है. इतना ही नहीं, एक्ट्रेस ने अपने इंस्टा स्टोरी पर कई सारे लोगों के पोस्ट भी शेयर किए हैं.

बुरी तरह फंस गई थी नुसरत भरूचा
वहीं इन दोनों देशों के बीच चल रही जंग के बीच बॉलीवुड एक्ट्रेस नुसरत भरूचा बुरी तरह फंस गई थीं. एक्ट्रेस वहां ‘हाइफा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ में शामिल होने गई थीं. इस फिल्म फेस्टिवल में नुसरत भरूचा की फिल्म ‘अकेली’ दिखाई गई. लेकिन इसी बीच वहां जंग छिड़ गई और नुसरत वहां फंस गईं. 

मीडिया से कहा मुझे घर जाने दो
हालांकि, कुछ समय बाद नुसरत भरूचा को एंबेसी ने ढूंढ निकाला और वह सही सलामत इजरायल से भारत वापस लौट आई हैं. सोशल मीडिया पर एक वीडियो सामने आया है, जहां एक्ट्रेस एयरोपोर्ट से बाहर निकलती हुई नजर आईं. इस वीडियो में नुसरत काफी हैरान-परेशान दिखीं. इस दौरान मीडिया से उन्होंने बात नहीं कि सिर्फ इतना कहा कि ‘मैं अभी बहुत परेशान हूं मुझे घर पहुंचने दो.’ बता दें कि एक्ट्रेस की फ्लाइट कनेक्टिंग थी. नुसरत वाया दुबई आई हैं. 

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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