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एंड्रॉयड के बाद एप्पल यूजर्स के लिए भी आया माइक्रोसॉफ्ट का एआई ऐप, आपके कई काम को कर देगा आसान

एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की दुनिया में टेक कंपनियों की भिड़ंत तेज होती जा रही है. ओपनएआई के चैटजीपीटी ने कंपटीशन को और इंटेंस कर दिया है. अब इस भिड़ंत में टेक जगत की दिग्गज कंपनी माइक्रोसॉफ्ट भी उतर आई है. कंपनी ने हाल ही में अपना मोबाइल एआई ऐप पेश किया है.

एंड्रॉयड के लिए पहले हुआ पेश

माइक्रोसॉफ्ट के एआई मोबाइल ऐप को कोपायलट नाम दिया गया है. यह ऐप ओपनएआई के चैटजीपीटी के ऐप की तरह ही है. पहले माइक्रोसॉफ्ट ने अपने एआई ऐप कोपायलट को एंड्रॉयड के लिए पेश किया था. अब इसे एप्पल के यूजर्स के लिए भी पेश कर दिया है. अब आईफोन और आईपैड जैसे एप्पल डिवाइस पर भी माइक्रोसॉफ्ट के एआई ऐप को यूज किया जा सकता है.

बिंग चैट का अपडेटेड वर्जन

कोपायलट ऐप को पहले बिंग चैट के नाम से जाना जा रहा था. माइक्रोसॉफ्ट ने कुछ अपडेट के साथ ऐप को कोपायलट नाम से पेश किया है. कोपायलट एआई ऐप उसी तरह काम करता है, जैसे ओपनआई के जेनरेटिव एआई चैटजीपीटी का मोबाइल ऐप करता है. कोपायलट ऐप अब एंड्रॉयड प्ले स्टोर के साथ एप्पल ऐप स्टोर पर भी उपलब्ध हो गया है. इसके साथ ही एआई के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा के नए दौर की शुरुआत हो चुकी है.

चैटजीपीटी के ऐप से बेहतर

माइक्रोसॉफ्ट का एआई ऐप कोपायलट एक चैट असिस्टेंट की तरह काम करता है. इसमें ओपनएआई के आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस मॉडलों- GPT-4 और DALL·E 3 की क्षमताओं का इस्तेमाल किया गया है. इस तरह से यह ओपनएआई के अपने चैटजीपीटी ऐप से बीस साबित होता है, क्योंकि ओपनएआई के चैटजीपीटी ऐप का फ्री वर्जन जीपीटी-3.5 पर ऑपरेट करता है, जबकि माइक्रोसॉफ्ट का कोपायलट ऐप ओपनएआई के सबसे नए लार्ज लैंग्वेज मॉडल जीपीटी-4 पर ऑपरेट करता है.

इस ऐप से कर सकते हैं ये काम

कोपायलट एआई ऐप के बारे में माइक्रोसॉफ्ट का दावा है कि यह यूजर्स की उत्पादकता को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होगा. इस ऐप में चैटबॉट फंक्शनलिटी, DALL-E 3 से पावर्ड इमेज जेनरेशन, ईमेल व डॉक्यूमेंट के लिए स्ट्रीमलाइन्ड टेक्स्ट ड्राफ्टिंग जैसे शानदार फीचर दिए गए हैं. यह ऐप सिंपल टेक्स्ट को विजुअल्स में बदलने में भी सक्षम है.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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