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Twitter पर फ्री में लोगों को मिल रहा ब्लू टिक, मृत लोगों के आकउंट पर भी वापस आया चेकमार्क

Twitter Blue Tick Return: ट्विटर पर फ्री वाला ब्लू टिक वापस आ गया है. कई लोगों को कंपनी ने उनका लिगेसी चेकमार्क वापस लौटा दिया है. इसमें प्रियंका चोपड़ा, नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मलाला यूसुफजई और टेनिस पाल्येर Andy Murray आदि शामिल हैं. पहले इस वापस आए ब्लू टिक को कोई ग्लिच बताया जा रहा था. लेकिन अब ये कहा जा रहा है कि कंपनी ऐसे सभी लोगों को ब्लू टिक वापस दे रही है जिनके 1 मिलियन से ज्यादा फॉलोवर हैं.

ये हैरान करने वाली बात 

दरअसल, हैरानी की बात ये है कि ऐसे लोगों को भी ब्लू टिक वापस मिला गया है जो कई साल पहले मर चुके हैं. इसमें Sushant Singh Rajput, Sidharth Shukla, Anthony Bourdain, Chadwick Boseman और  Kobe Bryant जैसे नाम शामिल हैं. जब हमने व्यक्तिगत तौर पर ये चेक किया तो वाकई में इन अकाउंट पर ब्लू टिक लगा हुआ था और वही मैसेज लिखा हुआ था जो ट्विटर ब्लू को सब्सक्राइब करने पर लिखा आता है. अब ये हैरानी कि बात है कि कैसे किसी मरे हुए व्यक्ति के अकाउंट से वेरिफिकेशन के लिए रिक्वेस्ट चली गई. ऐसा भी हो सकता है कि कोई इन एकाउंट्स को ऑपरेट कर रहा हो.

21 अप्रैल को हटा दिए थे फ्री वाले ब्लू टिक

एलन मस्क की कंपनी ट्विटर ने 21 अप्रैल की देर शाम प्लेटफार्म से सभी लिगेसी चेकमार्क यानि फ्री वाले ब्लू टिक हटा दिए थे. इसके चलते कई दिग्गज नेताओं, एक्टर और एथिलीट आदि के अकाउंट से ब्लू टिक हटा गया था. अब ट्विटर पर ब्लू टिक पाने के लिए नोटेबल होना जरुरी नहीं है. अब कोई भी व्यक्ति पैसे और नियमो का पालन कर के ट्विटर पर ब्लू टिक ले सकता है. भारत में ट्विटर ब्लू के लिए वेब यूजर्स को 650 और एंड्रॉइड और IOS यूजर्स को हर महीने 900 रुपये के चार्ज भरना होता है.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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