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श्मशान-कब्रिस्तान’ बयान पर लालू ने कहा, ‘PM की भाषा ओछी-खोटी

पटना रविवार को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में एक चुनावी रैली के दौरान प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिए गए ‘श्मशान-कब्रिस्तान’ बयान पर प्रतिक्रिया करते हुए राष्ट्रीय जनता दल  के प्रमुख लालू यादव ने एक के बाद कई ट्वीट किए। लालू ने इस बयान को लेकर PM मोदी की आलोचना की है। प्रधानमंत्री को ‘तानाशाह’ बताते हुए लालू ने आरोप लगाया कि PM की भाषा ‘ओछी, छोटी और खोटी’ है। साथ ही, लालू ने उनपर देशवासियों की भावनाएं भड़काने का भी आरोप लगाया है। लालू ने ट्विटर पर लिखा, ‘देश ने ऐसा PM नहीं देखा जो सीने पर अपनी पार्टी का चिह्न चिपकाकर धर्म और जाति की बात कर देशवासियों की भावनाएं भड़काने का काम करता है।’ इसके बाद एक दूसरे ट्वीट में लालू ने लिखा, ‘आप PM हैं साहब! देश में श्मशान बनाने व किसानों के बिल माफ करने से किसी ने रोका है क्या? 56 इंची डरपोक रास्ते से देश को गुमराह नहीं करता।

मालूम हो कि फतेहपुर की अपनी रैली में बोलते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था, ‘गांवों में कब्रिस्तान बनता है, तो श्मशान भी बनना चाहिए।’ इसी रैली के दौरान PM ने कहा, ‘रमजान में बिजली आती है, तो दीवाली में भी बिजली आनी चाहिए।’ इस बयान के मद्देनजर लालू ने एक बार फिर प्रधानमंत्री को ‘तानाशाह’ बताते हुए लिखा, ‘यह तो तानाशाह प्रधानमंत्री है। देश के टुकड़े-टुकड़े कर तबाह कर देगा। जनाब आप PM हो, इतनी ओछी, खोटी और छोटी बातें नहीं करनी चाहिए।’ एक अन्य ट्वीट में लालू ने लिखा, ‘मोदी कहते हैं मेरा क्या? झोला उठाकर चल दूंगा, लेकिन यह नहीं बताया कि इस अदृश्य झोले में अंबानी, अडानी के अलावा और कौन-कौन से झोल-झमेले भरे हुए हैं।’ मालूम हो कि उत्तर प्रदेश विधानसभा की हलचल शुरू होने के बाद से कई बार लालू यादव प्रधानमंत्री मोदी के बयानों की आलोचना करते आए हैं।एक और ट्वीट कर लालू ने लिखा, ‘PM को दल और द्वेष की भावना से ऊपर उठना चाहिए। उन्हें तकरार की नहीं प्यार की, तोड़ने की नहीं जोड़ने की, विनाश की नहीं विकास की बातें करनी चाहिए।’ कांग्रेस पहले ही प्रधानमंत्री के इस बयान को ‘दुखद’ बताते हुए इसे आपत्तिजनक बता चुकी है। इस बयान पर कांग्रेस ने चुनाव आयोग से मोदी और BJP की शिकायत करने की भी बात कही है।

Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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