टैकनोलजी

मेटा ने 100 भाषाओं को ट्रांसलेट करने वाला एआई सिस्टम किया पेश, समझ सकता है अलग-अलग बोली

सोशल मीडिया कंपनी मेटा (Meta) ने सीमलेसएम4टी नाम से एक एआई सिस्टम मॉडल पेश किया है. यह सिस्टम टेक्स्ट और स्पीच दोनों में लगभग 100 भाषाओं का अनुवाद और ट्रांसक्राइब कर सकता है, जो अलग-अलग बोलियों को भी समझ सकता है. टेकक्रंच की रिपोर्ट के मुताबिक, SeamlessAlign नामक एक नया ट्रांसलेट डेटासेट भी खुले सोर्स में उपलब्ध है. मेटा का कहना है कि सीमलेसएम4टी (SeamlessM4T) एआई-पावर्ड स्पीच-टू-स्पीच और स्पीच-टू-टेक्स्ट के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सफलता है.

ज्यादा प्रभावी ढंग से कम्यूनिकेट करने में मददगार

एएनआई की खबर के मुताबिक, मेटा का मानना है कि हमारा सिंगल मॉडल ऑन-डिमांड ट्रांसलेशन प्रदान करता है जो अलग-अलग भाषाएं बोलने वाले लोगों को ज्यादा प्रभावी ढंग से कम्यूनिकेट करने में मदद करता है. सोर्स लैंग्वेज भाषाओं को अलग भाषा पहचान तंत्र की जरूरत के बिना SeamlessM4T स्पष्ट रूप से पहचान लेता है. कुछ अर्थ में SeamlessM4T यूनिवर्सल स्पीच ट्रांसलेटर का उत्तराधिकारी है, जो एकमात्र डायरेक्ट स्पीच-टू-स्पीच ट्रांसलेशन सिस्टम्स में से एक है, जो होक्किन का सपोर्ट करता है, और मेटा की नो लैंग्वेज लेफ्ट बिहाइंड, एक टेक्स्ट-टू-टेक्स्ट मशीन अनुवाद उदाहरण है.

कई स्टार्टअप ने भी पेश किया 

यूनिवर्सल स्पीच मॉडल को अमेज़ॅन, माइक्रोसॉफ्ट, ओपनएआई और कई स्टार्टअप की तरफ से भी पेश किया गया. इसके अलावा, मोज़िला ने कॉमन वॉयस के डेवलपमेंट का नेतृत्व किया, जो ऑटोमैटिक स्पीच रिकॉग्निशन सिस्टम सिखाने के लिए कई भाषाओं में साउंड के सबसे व्यापक कलेक्शन में से एक है. SeamlessM4T ट्रांसलेट और ट्रांसक्रिप्शन एबिलिटी को एक मॉडल में इंटीग्रेट करने के अब तक के सबसे दमदार कोशिशों में से एक है.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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