विदेश

सैमसंग के उत्‍तराधिकारी को हथकड़ी व रस्सियों से बांधकर किया गया पेश, 6.27 वर्गमीटर कोठरी में रखा

मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रानिक सामान बनाने वाली दक्षिण कोरिया की विशाल कंपनी सैमसंग के उत्तराधिकारी ली जेइ-योंग को भ्रष्टाचार के मामले में हथकड़ी और रस्सियों में बांध कर पूछताछ के लिए पेश किया गया। इस इस मामले में राष्ट्रपति पार्क जीयून-ही पर भी आरोप लग रहे हैं। आरोप है कि सैमसंग इलेक्ट्रानिक्स के उपाध्यक्ष ली (48) ने राष्ट्रपति की एक गुप्त सहयोगी को चार करोड़ अमेरिकी डालर की रिश्वत दी ताकि सरकार की नीतियों को अनुकूल बनाया जा सके। वह सैमसंग समूह के मुख्यिा ली कुन-ही के बेटे हैं। उन्हें 17 फरवरी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था।

ली को सोल में विशेष अभियोजक के कार्यालय पर जब पेशी के लिए लाया गया तो वहां पत्रकार और कैमरामैन बड़ी संख्या में उनके इंतजार में खड़े थे। पत्रकारों ने उन पर सवालों की बौछार कर दी पर वह बगैर कुछ कहे कार्यालय के अंदर चले गए। उनके सीने पर बंदी-संख्या का फीता लटका हुआ था। दैनिक अखबार चोसन इल्बो की एक रपट के मुताबिक गिरफ्तारी के बाद उन्हें उनकी प्रतिष्ठा को देखते हुए विशेष सुविधा के तहत एक कैदी वाली 6.27 वर्गमीटर की कैद-कोठरी में रखा गया था जबकि सामान्यतौर पर छह-छह कैदियों को एक जगह रखा जाता है। सोल में 40 लाख डॉलर (करीब 27 करोड़ रुपये) की आलीशान कोठी में रहने वाले ली के लिए यह विशेष सुविधा एक अंधेरे कोने के समान है।

वहां उन्हें कैदियों की वर्दी और प्लास्टिक की तस्तरी में जेल का भेजन दिया गया। भोजन की तस्तरी कोटरी के दरवाजे के एक छोटे से झरोखे से पकड़ाई गयी। सोल के उस बंदीगृह में राष्ट्रपति पार्क की अंतरंग मित्र चावई सून-सिल, पार्क के पूर्व कार्यालय प्रमुख और पूर्व सांस्कृतिक मंत्री भी कैद हैं। इन पर सत्ता की दलाली का आरोप है।

Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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