खेल और मनोरंजन

जो कही गयी न मुझसे , वो जमाना कह रहा है……….

पाकीजा कालजयी फिल्म बन गयी . इसके गीत संगीत ने इसे कल्ट क्लासिक बना डाला .पाकीजा में मीनाकुमारी एक तवायफ बनी हैं .राजकुमार इस फिल्म के नायक हैं. दोनों में प्यार होता है . दोनों भाग कर शादी करने जाते हैं . वे जहां भी जाते हैं , लोग नर्गिस तवायफ को पहचान लेते हैं . नर्गिस का नाम पाकीजा रखने पर भी उसका अतीत उसका पीछा नहीं छोड़ता . थक हार कर नर्गिस नायक के जीवन से चले जाने का फैसला करती है .ऐसी मार्मिक फिल्म के बनने में कई तरह के किंतु परंतु लगे .इस फिल्म पर यह शेर पूरी तरह से लागू होता है .

तेरी मंजिल पर पहुंचना इतना आसां न था .
सरहद -ए -अक्ल से गुजरे तो यहां तक पहुंचे .

पाकीजा फिल्म का मुहुर्त 17 जनवरी 1957 को हुआ और यह रिलीज हुई 4 फरवरी 1972 को . अर्थात् कुल 15 साल का विचारणीय समय लगा, जबकि आम तौर पर एक फिल्म पूरा होने में एक या डेढ़ साल का हीं समय लगता है . इस प्रोजेक्ट से जुड़े कई लोगों की मौत हो गयी तो कई लोग इसे छोड़कर चले गये . पहले फिल्म ब्लैक एण्ड ह्वाईट शूट होनी शुरू हुई . जब कलर का दौर आया तो कलर शूट हुई . तभी सिनेमा स्कोप का जमाना आया तो कलर शूट हुए हिस्से रद्दी के टोकरी में फेंकने पड़े .फिल्म ने गति पकड़ी तो फिल्म के हीरो धर्मेंद्र को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया .धर्मेंद्र की जगह राजकुमार लाये गये.धर्मेन्द्र वाले हिस्से पुन: राजकुमार पर शूट किये गये.

फिल्म के निर्माता निर्देशक कमाल अमरोही थे , जो कि शत प्रतिशत विशुद्धता के लिए मशहूर थे . कमाल साहब की कड़ी नजर हर शूट पर थी .उनकी पत्नी मीनाकुमारी ने खुद कास्ट्यूम डिजाइन का जिम्मा ले रखा था . फिल्म की शूटिंग चलते चलते रूक गयी . कैमरे के लेंस का सेंटर फोकस खराब हो गया था . उस समय इस कैमरे के लेंस का किराया पचास हजार रुपये प्रतिदिन था . कम्पनी वाले आए . लेंस बदला . फिर से उन दृश्यों की शूटिंग हुई जो खराब लेंस से हुई थी . फिल्म बनने के शुरू के दौर से हीं कमाल अमरोही व मीना कुमारी के सम्बंध तल्ख होने लगे थे . सन् 1964 आते आते कमाल साहब ने मीनाकुमारी को तालाक दे दिया . तालाक के बाद मीना कुमारी ने लिखा था –

तालाक तो दे रहे हो नजर-ए-कहर के साथ.
जवानी भी मेरा लौटा दो , मेरे मेहर के साथ .

तालाक की वजह से फिल्म बननी बंद हो गयी . सात साल का लम्बा समय व्यतीत हो चला था . इस फिल्म के कुछ फुटेज नर्गिस व सुनील दत्त ने देखे . उन्हें इतनी अच्छी फिल्म का बनना बंद होना बहुत खला . दोनों ने कमाल अमरोही व मीनाकुमारी से बात की . उन्हें फिल्म बनाने के लिए पुन: राजी किया . फिल्म बनी और कालजयी बनी. फिल्म जुबली हिट हुई , पर मीनाकुमारी फिल्म के हिट होने का जश्न न मना सकीं. उनका 31 मार्च 1972 को इंतकाल हो गया .

यूं तेरी रहगुजर से ,
दीवानावार गुजरे .
कांधे पे अपने रख के ,
अपना मजार गुजरे .

Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button