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आ रहा है GPT-5, इतिहास बन जाएगा ChatGPT4!, ओपनएआई ने ट्रेडमार्क के लिए पेटेंट फाइल किया

लैंग्वेज मॉडल ChatGPT4 आने वाले समय में इतिहास बन जाएगा, क्योंकि ओपनएआई इसके नेक्स्ट जेनरेशन लैंग्वेज मॉडल GPT-5 को जल्द पेश करने जा रही है. कंपनी ने नए ट्रेडमार्क के लिए पेटेंट अप्लाई किया है. खबर के मुताबिक, बीते 18 जुलाई को पेश किए गए संयुक्त राज्य अमेरिका पेटेंट और ट्रेडमार्क ऑफिस फाइलिंग से पता चलता है कि एलएलएम पर काम चल रहा है, हालांकि जीपीटी-4 इस समय सिर्फ कुछ महीने ही पुराना है.

जीपीटी-5 

जीलपीटी-5 के टेक्निकल डिटेल को लेकर अभी हालांकि कोई जानकारी नहीं है. माना जा रहा है रहा है कि नए जेनरेशन के इस मॉडल में एक एक बहुत बड़ा सुधार देखने को मिल सकता है. voicebot.ai की खबर के मुताबिक, GPT-5 एक डाउनलोड किया जा सकने वाला एक कंप्यूटर प्रोग्राम है जिससे नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग, जेनरेशन, समझ और विश्लेषण के लिए ह्यूमन स्पीच और टेक्स्ट के आर्टिफिशिय़ल प्रोडक्शन जैसी गतिविधि संभव हो पाती है. इतना ही नहीं, बल्कि अनुवाद और ट्रांसक्रिप्श जैसे विभिन्न काम में मददगार है.

पेटेंट में किया है दावा

जीपीटी-5 (OpenAI) के ट्रेडमार्क एप्लीकेशन में दावा किया गया है कि यह एल्गोरिदम को डेवलप करने, चलाने और विश्लेषण करने में सक्षम है. यह डेटा के संपर्क के जवाब में विश्लेषण, वर्गीकरण और कार्रवाई करना सीखने में सक्षम है. खबर के मुताबिक, इसका इस्तेमाल ट्रेडमार्क जेनरेटिव एआई के बहुत व्यापक विवरण के लिए भी जाता है, इसका इस्तेमाल आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क (कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क) के डेवलपमेंट और अमल के लिए किया जा सकता है.

अभी ट्रेनिंग की बात नहीं

रिपोर्ट में कहा गया है कि OpenAI के सीईओ सैम ऑल्टमैन ने सार्वजनिक रूप से दावा किया है कि GPT-5 को अभी ट्रेंड नहीं किया जा रहा है. इसका मतलब यह नहीं है कि एलएलएम के दूसरे पहलु पर डेवलपम नहीं हो रहा है. यह GPT-5 के आखिरीनिर्माण के लिए एक शुरुआती नौकरशाही चेकमार्क भी हो सकता है जिसे OpenAI रास्ते से हटाना चाहता था, जैसे किसी प्रोडक्ट के लिए डोमेन नाम खरीदना जो अभी तक तैयार नहीं हुआ है.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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