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देवआनंद ने जीनत अमान को दिया था फिल्मों में मौका, फिर क्यों आ गई थी दोनों के बीच दूरियां

Zeenat Aman Fond Memories: जीनत अमान (Zeenat Aman) 70 के दशक की खूबसूरत और डिमांडिग एक्ट्रेस में से एक थीं. लंबे समय बाद वो एक बार फिर से काफी एक्टिव हो गई हैं. सोशल मीडिया पर भी लगातार उनकी प्रेजेंस बनी हुई है. वो लगातार अपने इंस्टाग्राम अकाउंट से अपनी लेटेस्ट और थ्रोबैक फोटो शेयर करने के साथ, उस दौर के अनसुने किस्से सुनाती रहती हैं. 

जीनत अमान ने जब किया फिल्म इंडस्ट्री छोड़ने का फैसला

हाल ही में शेयर किए गए एक पोस्ट में उन्होंने बताया कि जब वो फिल्म इंडस्ट्री और देश छोड़कर जा रही थीं, तब देवआनंद ने उन्हें ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ का ऑफर देकर रोका था, इतना ही नहीं हालिया पोस्ट में एक्ट्रेस ने देव आनंद के साथ अपने मनमुटाव की वजह का भी खुलासा किया. 


 

जीनत अमान ने अपनी लेटेस्ट पोस्ट में लिखा, ‘देव साहब अपने करियर में कामयाबी की कहानियां लिख रहे थे. हमें भी उनके साथ काम करने में काफी आनंद आ रहा था. उन्होंने मुझे लॉन्च किया था और वो चाहते तो  मुझसे कॉन्ट्रैक्ट साइन करा सकते थे कि मैं उनकी ही फिल्मों में काम करूं, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. उन्होंने कभी मुझे किसी और की फिल्म में काम करने से नहीं रोका. यही वजह थी कि मैं किसी भी निर्देशक के साथ काम करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र थी.’

आखिर क्यों देव आनंद के साथ रिश्तों में आ गई थीं दूरियां

जीनत ने अपनी इस पोस्ट में आगे लिखा, ‘मेरा फिल्मी करियर काफी अच्छा चल रहा था, लेकिन अफसोस इनमें से एक फिल्म के चलते मेरे और देव साहब के बीच गलतफहमी ने जन्म ले लिया.’ हालांकि जीनत अमान ने अपनी इस पोस्ट में इस बात का जिक्र फिलहाल नहीं किया है, लेकिन उन्होंने अपने चाहने वालों से ये वादा किया है कि वो कल या परसों अपनी इस कहानी को जरूर पूरा करेंगी. 

हालांकि देव आनंद की आत्मकथा रोमांसिंग विद लाइफ में अभिनेता ने बताया था कि जब जीनत अमान को राज कपूर की फिल्म ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ में कास्ट किया गया तब जीनत अमान के साथ उनके रिश्तों में कड़वाहट आ गई थी. खैर अब जीनत अमान अपनी अगली पोस्ट में इस बात का खुलासा करेंगी कि आखिर वो कौन सी वजह थी जिसके चलते देव साहब के साथ उनके रिश्तों में दूरियां आईं.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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