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लैपटॉप इम्पोर्ट भारत में आखिर क्यों किया गया बैन, किसे होगा फायदा, यहां समझें पूरी बात

भारत सरकार ने 3 अगस्त 2023 को हाल में लैपटॉप-पीसी के इम्पोर्ट पर बैन (laptop import ban in India) लगा दिया. आखिर ये बैन क्यों लगा, आपने गौर किया? कुछ सोचा कि आखिर सरकार ने अचानक से ऐसा फैसला (laptop import restrictions) कैसे कर लिया. किसे फायदा होगा और बड़ा सवाल- क्या इसका असर आपकी अगली लैपटॉप खरीदारी पर भी पड़ेगा? इसे समझना जरूरी है.  आइए जानतें हैं भारत सरकार की इस पहल के पीछे आखिर क्या है सोच.

बैन से जुड़ा ये मामला आखिर है क्या 

भारत सरकार की तरफ से टैबलेट और पर्सनल कंप्यूटर के इम्पोर्ट पर बैन (laptop import ban in India) लगाने से कोई भी कंपनी डिवाइस बिक्री के लिए विदेशों से लाना चाहती है, उसके पास एक स्पेशल पास होना चाहिए जिसे बैन किए गए इम्पोर्ट के लिए वैलिड लाइसेंस कहा जाता है. लेकिन, किसी स्टोर या ई-कॉमर्स पोर्टल से पोस्ट या कूरियर के जरिए खरीदे गए एक लैपटॉप, टैबलेट और पर्सनल कंप्यूटर पर छूट भी दी गई है. ये इम्पोर्ट ड्यूटी के पेमेंट के मुताबिक होंगे. सरकार ने अचानक ये फैसला लिया क्योंकि सरकार डोमेस्टिक टेक प्रोडक्शन को बढ़ावा देने और चीन से आयात (laptop import in India) को रोकने के मिशन पर है.

इन वजहों से लगाया बैन!

एक रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल से जून 2023 तक भारत ने लैपटॉप, टैबलेट और पर्सनल कंप्यूटर सहित 19.7 बिलियन डॉलर मूल्य के इलेक्ट्रॉनिक्स सामानों का आयात किया. रॉयटर्स की एक खबर में कहा गया है कि यह सालाना आधार पर लगभग 6.25% की बढ़ोतरी है. इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस भारत के कुल सालाना आयात का लगभग 1.5% हिस्सा है. यानी इम्पोर्ट लैंडस्केप में इन सामानों की मजबूत उपस्थिति है.

घरेलू निर्माताओं के लिए होगा मौका

देश में इलेक्ट्रॉनिक सामानों के घरेलू प्रोडक्शन को सपोर्ट करने के लिए कई स्कीम सरकार लाई है. सरकार का तर्क है कि बैन (laptop import ban) का फैसले के बीच अगर मौका मिले तो घरेलू मैनुफैक्चरर आगे बढ़ सकते हैं और मार्केट में मौजूद गैप यानी अंतर को पाट सकते हैं. ऐसे में डोमेस्टिक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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