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पिता शत्रुघ्न सिन्हा की तरह राजनीति में एंट्री लेंगी सोनाक्षी सिन्हा?

Sonakshi Sinha On Joining Politics: बॉलीवुड एक्ट्रेस सोनाक्षी सिन्हा इन दिनों संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज ‘हीरामंडी’ को लेकर सुर्खियों में छाई हुई हैं. लंबे इंतजार के बाद आखिरकार हीरामं 1 मई, 2024 को ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो गई हैं. भंसाली की इस सीरीज में सोनाक्षी सिन्हा ने ‘हीरामंडी’ में फरीदान का किरदार निभाया है और दर्शक उनकी अदाकारी को काफी सराह रहे हैं.

‘हीरामंडी’ को लेकर चर्चा में बनी हुईं सोनाक्षी सिन्हा ने हाल ही में पॉलिटिक्स में शामिल होने को लेकर बात की. जब उन्हें पूछा गया कि क्या वे अपने पिता शत्रुघ्न सिन्हा के नक्श-ए-कदम पर चलकर राजनीति में एंट्री लेंगी तो एक्ट्रेस ने मजेदार जवाब दिया. उन्होंने कहा कि लोग वहां भी उनपर नेपोटिज्स का इल्जाम लगाएंगे. उन्होंने ये भी कहा कि उनमें नेता बनने वाली काबिलियत नहीं है.

‘फिर वहां भी तुम नेपोटिज्म-नेपोटिज्म करोगे…’
राज शमानी के साथ बातचीत में सोनाक्षी सिन्हा ने राजनीति में शामिल होने को लेकर कहा- ‘नहीं, फिर वहां भी तुम नेपोटिज्म-नेपोटिज्म करोगे. खैर मजाक से हटकर मुझे नहीं लगता कि मैं ऐसा करूंगी क्योंकि मैंने अपने पिता को ऐसा करते देखा है. मुझे नहीं लगता कि मुझमें इसके लिए काबिलियत है. मेरे पिताजी लोगों के बीच रहने वाले शख्स हैं, जबकि मैं एक बहुत ही पर्सनल शख्सियत हूं.’

पिता के नक्श-ए-कदम पर नहीं चलेंगी सोनाक्षी!
सोनाक्षी ने आगे कहा- ‘आपको लोगों का व्यक्ति बनना होगा, आपको उनके लिए मौजूद रहना होगा और यह देश के हर हिस्से से कोई भी अजनबी हो सकता है. मैंने अपने पिता को ऐसा करते देखा है, इसलिए ऐसा मत सोचो कि मुझमें वह बात है. तो, कोई मतलब नहीं है, सिर्फ इसके लिए किसी चीज में शामिल होने का कोई मतलब नहीं है.’

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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