बॉलीवुड और मनोरंजन

विदेश में पहली बार शूट की थी ये बॉलीवुड फिल्म, मेकर्स ने पानी की तरह बहाया था पैसा

बॉलीवुड इंडस्ट्री काफी पुरानी हो गई है और हर साल तमाम फिल्में रिलीज होती हैं। बॉलीवुड फिल्मों को ना सिर्फ इंडिया में बल्कि दुनिया भर में पसंद किया जाता है। जैसे-जैसे समय बदला बॉलीवुड की फिल्मों को बनाने का तरीका बदलता चल गया। जहां पहले सिर्फ भारत में फिल्में शूट होती थीं और आज के समय में फिल्मों के विदेश में शूट होना आम बात है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि विदेश में शूट होने वाली पहली बॉलीवुड फिल्म कौन थी। आइए हम आपको बताते हैं कि बॉलीवुड की किस फिल्म को पहली बार विदेश में शूट किया गया था।

फिल्म ‘संगम’ साल 1964 में हुई थी रिलीज

मीडिया रिपोर्ट में बताया जाता है कि साल 1964 में आई राजकपूर की फिल्म ‘संगम’ विदेश में शूट की गई थी। ये बॉलीवुड की पहली फिल्म थी जिसे विदेश में शूट किया गया था। फिल्म ‘संगम’ में राजकपूर के साथ वैजयंती माला और राजेंद्र कपूर भी थे। इस फिल्म में तीनों के बीच लव ट्राएंगल पर दिखाया गया था। फिल्म’ संगम’ के रोमांटिक सीन को वेनिस, पेरिस और स्विटजरलैंड में फिल्माए गए थे। इसके साथ ही राजकपूर, वैजयंती माला और राजेंद्र कुमार की फिल्म ‘संगम’ बॉलीवुड की लंबी फिल्मों में से एक थी। इस फिल्म को 238 मिनट का बनाया गया था। इस फिल्म में दो इंटरवल थे।

फिल्म ‘संगम’ ने की बजट से चार गुना कमाई

राजकपूर, वैजयंती माला और राजेंद्र कुमार की फिल्म ‘संगम’ राजकपूर प्रोडक्शन की पहली रंगीन फिल्म भी थी। इस फिल्म को विदेश में शूट करने के लिए राजकपूर ने काफी पैसा खर्च किया था। हालांकि, फिल्म ‘संगम’ ने बॉक्स ऑफिस पर जमकर कमाई की थी जिसके चलते राजकपूर को कोई नुकसान नहीं हुआ। फिल्म ‘संगम’ के विदेशी लोकेशन पर शूट होने के बाद तमाम फिल्मों की शूटिंग हुई और ये सिलसिला चल पड़ा। बताया जाता है कि फिल्म ने अपने बजट से चार गुना कमाई की थी। वहीं, कुछ मीडिया रिपोर्ट में दावा किया जाता है कि विदेशी लोकेशन पर शूट होने वाली पहली भारतीय फिल्म ‘अफ्रीका में हिंद’ थी। ये फिल्म साल 1940 में हिरेंद्र बसु का डायरेक्शन में बनी थी।

बॉलीवुड, हॉलीवुड, साउथ, भोजपुरी और टीवी जगत की ताजा खबरों के लिए यहां क्लिक करें…

Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button