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ऑस्कर लाइब्रेरी में शामिल हुई फिल्म ‘द वैक्सीन वॉर’, विवेक अग्निहोत्री ने जताई खुशी

The Vaccine War Selected For Oscar Library: विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘द वैक्सीन वॉर’ 5 अक्टूबर को सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी. फिल्म को रिलीज हुए 8 दिन हो चुके हैं लेकिन फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास परफॉर्म नहीं कर पा रही है. एक हफ्ते बाद भी फिल्म 10 करोड़ का आंकड़ा भी नहीं छू पाई है. लेकिन इस बीच मेकर्स को बड़ी राहत मिली है क्योंकि फिल्म को ऑस्कर लाइब्रेरी के ‘एकेडमी कलेक्शन्स’ के लिए चुन लिया गया है.

सैकनिल्क की रिपोर्ट के मुताबिक ‘द वैक्सीन वॉर’ ने अपनी रिलीज के बाद से अब तक सिर्फ 8.5 करोड़ का कलेक्शन किया है. ऐसे में मेकर्स के लिए यह चिंता का विषय है. वहीं इस बीच फिल्म मेकर को एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज लाइब्रेरी से फिल्म की स्क्रिप्ट को शामिल करने के लिए ईमेल आया है. ऐसे में विवेक अग्निहोत्री ने सोशल मीडिया के जरिए फिल्म की इस अचीवमेंट पर खुशी जाहिर की है.


‘मुझे गर्व है’- विवेक अग्निहोत्री
विवेक अग्निहोत्री ने अपने इंस्टाग्राम पर एक ईमेल का स्क्रीनशॉट शेयर किया है जो कि ‘द वैक्सीन वॉर’ की स्क्रिप्ट के लिए एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज लाइब्रेरी की तरफ से उन्हें आया है. इसके साथ विवेक ने कैप्शन में लिखा- ‘मुझे गर्व है कि ‘द वैक्सीन वॉर’, एक सच्ची कहानी की स्क्रिप्ट को ऑस्कर ओआरजी की लाइब्रेरी ने ‘अकादमी कलेक्शन’ में शामिल और स्वीकार किया गया है. मुझे खुशी है कि सैकड़ों सालों तक ज्यादा से ज्यादा गंभीर लोग भारतीय सुपरहीरो की इस महान कहानी को पढ़ेंगे.’

ये है ‘द वैक्सीन वॉर’ की कहानी
‘द वैक्सीन वॉर’ की कहानी के बारे में बात करें तो फिल्म इंडियन साइंटिस्ट के वैक्सीन बनाने के स्ट्रगल को दिखाने का दावा करती है. फिल्म में कोरोना वायरस के प्रकोप के दौरान डॉक्टरों और साइंटिस्ट्स के योगदान को श्रद्धांजलि दी गई है. ‘द वैक्सीन वॉर’ में नाना पाटेकर, पल्लवी जोशी और रायमा सेन जैसे कलाकारों ने अहम किरदार अदा किए हैं. फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर भले ही अच्छी कमाई नहीं की है लेकिन टाइम्स स्क्वायर पर गाना लॉन्च करने वाली पहली इंडियन फिल्म का रिकॉर्ड अपने नाम कर चुकी है.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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