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‘आदिपुरुष’ की डूबती नैया को बचाने के लिए मेकर्स ने उठाया ये कदम,इतने सस्ते मिलेंगे 3D के टिकट्स

Adipurush Tickets: ओम राउत की मल्टी स्टारर फिल्म ‘आदिपुरुष’ (Adipurush) का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन अब लगातार गिरता जा रहा है.ऐसे में फिल्म डूबती नैया को बचाने  के लिए मेकर्स ने एक पैंतरा अपनाया है. ये पैंतरा कितना कामयाब हो पाएगा ये तो अगले दो दिन में पता चलेगा, लेकिन मेकर्स ने क्या कदम उठाया है ये हम आपको बताते हैं.

क्या इस कदम से होगा मेकर्स को फायदा…
फिल्म को लेकर देशभर में हो रहे विरोध के बीच टी-सीरीज ने ये अनाउंस किया है कि अगले दो दिन यानी 22 जून और 23 जून को ‘आदिपुरुष’ की 3D की टिकट्स सिर्फ 150 रुपए में मिलेंगी.टी-सीरीज ने आदिपुरुष का पोस्टर शेयर किया है जिसपर ये जानकारकी दी गई है कि ये ऑफर सिर्फ 2 दिन के लिए है. हालांकि ये ऑफर आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरला और तमिलनाडु में नहीं होगा. अब देखना ये होगा कि टिकट्स का प्राइज सस्ता करने से क्या थिएटर में आदिपुरष देखने वालों की भीड़ जुट पाएगी?.


बदले गए विवादित डायलॉग्स…
फिल्म के खिलाफ हो रहे भारी विरोध के बाद मेकर्स ने इसके उन 4 विवादित डायलॉग्स को बदल दिया है जिनपर सबसे ज्यादा अपत्ति थी. उन डायलॉग्स में बदलाव कुछ इस तरह किए गए हैं :-

1. ‘तू अंदर कैसे घुसा, तू जानता भी है कौन हूं मैं’…इस संवाद को अब बदलकर ‘तुम अंदर कैसे घुसे, तुम जानते भी हो कौन हूं मैं’ कर दिया गया है.

2.’कपड़ा तेरे बाप का…तो जलेगी भी तेरे बाप की’ …इस संवाद को बदलकर अब ‘कपड़ा तेरी लंका का …तो जलेगी भी तेरी लंका’ कर दिया गया.

3. ‘जो हमारी बहनों…उनकी लंका लगा देंगे’ को भी बदला गया है. अब फिल्म में ये संवाद होगा ‘जो हमारी बहनों…उनकी लंका में आग लगा देंगे’.

4. ‘मेरे एक सपोले ने तुम्हारे शेषनाग को लंबा कर दिया’ को बदलकर ‘मेरे एक सपोले ने तुम्हारे शेषनाग को समाप्त कर दिया’ में तब्दील किया गया है.

कलेक्शन की बात करें सैकनिल्क की अर्ली ट्रेंड रिपोर्ट के मुताबिक ‘आदिपुरुष’ ने अपनी रिलीज के पांचवें दिन यानी मंगलवार (20 जून) को महज 10.80  करोड़ का कलेक्शन किया इसके बाद फिल्म की कुल कमाई अब 247.90 करोड़ रुपये हो गई है.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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