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AI सर्विसेस को फास्ट करने के लिए Microsoft ने लॉन्च की कम्प्यूटिंग चिप, क्या होगा फायदा?

AI सर्विसेस पर कॉस्ट को कम करने के लिए माइक्रोसॉफ्ट ने बीते दिन खुद की कम्प्यूटिंग चिप लॉन्च की है. इस चिप के जरिए कंपनी अपने AI सर्विसेस को बेहतर और फास्ट करेगी, साथ ही कॉस्ट को भी कम करने का प्रयास करेगी. फिलहाल टेक जॉइंट गूगल और माइक्रोसॉफ्ट को लोगों को AI सर्विस देने के लिए इसके मेंटेंनेस से लेकर रखरखाव तक पर मोटा पैसा खर्च करना पड़ रहा है. नार्मल सर्च इंजन की तुलना  सर्विसेस की कॉस्ट 10 गुना ज्यादा है.

माइक्रोसॉफ्ट ने कहा कि उसकी चिप्स बेचने की योजना नहीं है बल्कि वह इनका उपयोग अपनी सदस्यता सॉफ्टवेयर पेशकशों को सशक्त बनाने और अपनी एज़्योर क्लाउड कंप्यूटिंग सेवा के हिस्से के रूप में करेगी. कंपनी ने सिएटल में अपने इग्नाइट डेवलपर सम्मेलन में, एआई कंप्यूटिंग कार्यों को तेज करने और व्यावसायिक सॉफ्टवेयर यूजर्स के साथ-साथ इच्छुक डेवलपर्स के लिए अपनी 30 डॉलर प्रति माह की “कोपायलट” सेवा के लिए आधार प्रदान करने के लिए माइया नामक एक नई चिप पेश की है.

माइक्रोसॉफ्ट ने Maia चिप को लार्ज लैंग्वेज मॉडल जैसे कि Azure OpenAI सर्विस को चलाने के लिए डिजाइन किया है. जिन लोगों को नहीं पता कि Microsoft Azure OpenAI सेवा क्या है तो दरअसल, ये आपकी प्रोडक्शन आवश्यकताओं, जैसे महत्वपूर्ण उद्यम सुरक्षा, अनुपालन और क्षेत्रीय उपलब्धता को पूरा करने के लिए Azure वैश्विक बुनियादी ढांचे पर चलती है.

माइया चिप से कॉस्ट कम करेगी कंपनी 

माइक्रोसॉफ्ट के अधिकारियों ने कहा है कि वे अपने प्रोडक्ट्स में Maia चिप जरिए AI के अलग-अलग मॉडल्स को डालेंगे जिससे कॉस्ट को कम किया जा सकेगा और यूजर्स को बढ़िया और फास्ट रिस्पॉन्स मिलेगा. माइक्रोसॉफ्ट ने ये भी कहा कि अगले साल वह अपने एज़्योर ग्राहकों को क्लाउड सेवाएं प्रदान करेगा जो एनवीडिया और एडवांस्ड माइक्रो डिवाइसेज के नवीनतम फ्लैगशिप चिप्स पर बेस्ड होगी. इसके अलावा कंपनी ने कहा कि वह AMD के चिप्स पर GPT 4 , जो OpenAI का सबसे एडवांस्ड मॉडल है उसका परीक्षण भी कर रही है. 

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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