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पूनम पांडे से पहले फैलाई गई थी मनीषा कोइराला की मौत की झूठी खबर, जानें पूरा मामला

बॉलीवुड इंडस्ट्री में इन दिनों पूनम पांडे की मौत की झूठी खबर लगातार चर्चा में बनी हुई है। दरअसल, पूनम पांडे ने अपने मौत की झूठी खबर सोशल मीडिया पर शेयर की है और बाद खुद आकर बताया कि वह जिंदा हैं। इसके बाद पूनम पांडे की जमकर आलोचना हो रही है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये पहला मामला नहीं कि किसी एक्ट्रेस की मौत की झूठी खबर इस तरह से वायरल हुई हो। इससे पहले मनीषा कोइराला की मौत की झूठी खबर फैलाई गई थी और ये काम किसी और ने नहीं बल्कि एक नामचीन डायरेक्टर ने किया था। आइए जानते हैं कि मनीषा कोइराला की झूठी खबर किस डायरेक्टर ने फैलाई थी और इसके पीछे क्या वजह थी।

1994 में आई थी मनीषा कोइराला की मौत की झूठी खबर

साल 1994 में मनीषा कोइराला की फिल्म ‘क्रिमिनल’ रिलीज हुई थी और उनके साथ नागार्जुन नजर आए ते। इस फिल्म को लोगों ने पसंद किया गया था। फिल्म ‘क्रिमिनल’ के दौरान इसके डायरेक्टर महेश भट्ट ने अपनी फिल्म को हिट कराने के लिए नई तरकीब निकाली और एक्ट्रेस मनीषा कोइराला की मौत की झूठी खबर के पोस्टर अखबार में छपवाए थे। इस खबर के बाद फिल्म इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ गई लेकिन जब सच्चाई सामने तो लोग हैरान रहे। महेश भट्ट के इस फैसले के बाद लोगों ने उनकी खूब आलोचना की थी। बताया जाता है कि मनीषा कोइराला तक को अपनी मौत की झूठी खबर के बारे में नहीं पता था। Also Read – Throwback: खुद से 20 साल बड़े नाना पाटेकर के प्यार में पड़ गई थीं मनीषा कोइराला, लव स्टोरी का हुआ था दुखद अंत

पूनम पांडे ने शेयर की थी मौत की झूठी खबर

गौरतलब है कि पूनम पांडे के इंस्टाग्राम अकाउंट ने बीते 2 फरवरी को एक पोस्ट शेयर कर जानकारी दी थी, ‘ये सुबह हमारे लिए कठिन है। आपको ये बताते हुए दुख हो रहा है कि हमने सर्वाइकल कैंसर के कारण अपनी प्यारी पूनम को खो दिया है। उनके संपर्क में आने वाला हर इंसान उनसे प्यार से मिला। दुख की इस घड़ी में हम प्राइवेसी की रिक्वेस्ट करेंगे। हम उन्हें हमारे द्वारा शेयर की गई हर बात के लिए प्यार से याद करेंगे।’

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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