टैकनोलजी

लैपटॉप इम्पोर्ट बैन को कंपनियों ने 9-12 माह तक आगे बढ़ाने की अपील की, बताई ये वजह

आईटी कंपनियों (IT companies) ने केंद्र सरकार से लैपटॉप (laptop) सहित दूसरे डिवाइस के आयात बैन (laptop import restrictions) को अगले 9-12 महीने के लिए टालने की अपील की है. एप्पल, एसर, एचपी, डेल और दूसरी पीसी मैनफैक्चरर कंपनियों ने सरकार से एचएसएन कोड 8741 के तहत कैटेगराइज लैपटॉप, पीसी, टैबलेट और दूसरे वस्तुओं के लिए लाइसेंस हासिल करने की समयसीमा बढ़ाने की रिक्वेस्ट किया है. द इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक, आईटी हार्डवेयर कंपनियों ने कहा कि उन्हें मैनुफैक्चरिंग प्लांट सेट अप करने की जरूरत है.

दूसरे देशों से आयात पर निर्भर 

खबर के मुताबिक, मीटिंग में मौजूद इंडस्ट्री के अधिकारियों के हवाले से कहा कि पीसी मैनुफैक्चरर ने लाइसेंसिंग की प्रक्रिया के बारे में भी स्पष्टीकरण मांगा है. हालांकि, यह फैसला न सिर्फ विदेशी खिलाड़ियों को प्रभावित करता है, क्योंकि कई भारतीय आईटी कंपनियां चीन सहित दूसरे देशों से आयात पर निर्भर हैं. दूसरे देशों से लैपटॉप और पीसी (Import of Laptop and PC) के आयात पर प्रतिबंध लगाने का सरकार का कदम मुख्य रूप से भारत में विनिर्माण को बढ़ावा देना है. सरकार ने भारतीय ओईएम से उनकी प्रोडक्शन कैपिसिटी और बढ़ाने के लिए जरूरी समय को समझने के लिए फीडबैक भी मांगा है.

रास्ते में आने वाले शिपमेंट को मंजूरी 

इंडस्ट्री के एक अधिकारी ने कहा कि नोटिफिेकेशन में कहा गया है कि रास्ते में आने वाले शिपमेंट (laptop import restrictions) को मंजूरी दे दी जाएगी. लेकिन डीजीएफटी नोटिफिकेशन आने के एक दिन बाद 4 अगस्त से सभी शिपमेंट रोके जा रहे हैं. 5 अगस्त की देर शाम तक कोई कस्टम क्लियरेंस नहीं हो रहा था. सरकार का यह फैसला न सिर्फ विदेशी कंपनियों को असर डालता है, बल्कि कई भारतीय आईटी कंपनियां चीन सहित दूसरे देशों से आयात पर निर्भर हैं.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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