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UPSC की प्रीलिम्स परीक्षा में ही फेल हो गया ChatGPT, केवल इतने सवालों का दे पाया सही जवाब

ChatGPT Fails in UPSC Exam: ChatGPT के आने के बाद इसका तरह-तरह से इस्तेमाल किया जा रहा है. हाल ही में कई वाक्य ऐसे देखने को मिले जिनमें यूजर्स ने ChatGPT से कई प्रश्न पत्र हल करवाए. इसी तरह का एक टेस्ट एक बार फिर एक लिया गया. जिसमें ChatGPT से यूपीएससी प्रीलिम्स परीक्षा का प्रश्न पत्र हल करवाया. जिसमें  ChatGPT मात्र 54 सवाल के जवाब ही सही बता पाया. यूपीएससी परीक्षा देश की सबसे बड़ी और कठिन परीक्षा है.

यूपीएससी परीक्षा 2022 से जुड़े सवाल ChatGPT से एनालिटिक्स इंडिया मैगज़ीन की तरफ से पूछे गए थे. AIM ने सवाल किया कि ‘क्या ChatGPT UPSC की परीक्षा पास कर सकता है?’ इस पर ChatGPT ने जवाब दिया कि वह एक AI लैंग्वेज मॉडल होने के कारण मेरे पास ज्ञान का काफी भंडार है. मगर यूपीएससी परीक्षा पास करने के लिए ज्ञान के साथ क्रिटिकल थिंकिंग, एप्लीकेशन एबिलिटी और टाइम मैनेजमेंट स्किल्स का भी होना आवश्यक है. लेकिन मैं अपनी क्षमताओं के अनुसार आपको उचित जवाब देने का प्रयास करूंगा.

ChatGPT से अलग-अलग विषयों से सवाल पूछे गए थे. जिनमें भूगोल, अर्थव्यवस्था, ऐतिहासिक, इकोलॉजी, सामान्य विज्ञान से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल महत्व से जुड़े करंट इवेंट्स और सोशल डेवलपमेंट और राजनीतिक विज्ञान से जुड़े सवाल शामिल थे. रिपोर्ट में पता चला कि ChatGPT ने अर्थव्यवस्था और भूगोल से जुड़े सवालों के गलत जवाब दिए. ChatGPT इतिहास से जुड़े आसान सवालों के जवाब देने के मामले में फेल हो गया. हालांकि ये कोई पहला वाकया नहीं था, जब ChatGPT किसी सवाल का जवाब नहीं दे सका. सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए कटऑफ 87.54 था, जो बताता है कि ChatGPT UPSC परीक्षा को पास नहीं कर सका.

हर साल लाखों अभ्यर्थी करते हैं अप्लाई  

यूपीएससी की परीक्षा दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक मानी जाती है. हर साल लाखों उम्मीदवार इस परीक्षा में शामिल होते हैं, लेकिन उनमें से केवल कुछ ही मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू के लिए अपनी जगह बना पाते हैं.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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