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कहां है अमिताभ बच्चन की ‘शहंशाह’ वाली स्टील की जैकेट? एक्टर ने सालों बाद खोला राज

Amitabh Bachchan Tweet: यूं तो सदी के महानायक कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) के हर किरदार को दर्शकों ने बेशुमार प्यार दिया है. लेकिन साल 1988 में रिलीज हुई उनकी फिल्म ‘शहंशाह’ (Shahenshah) का फैंस में अलग ही क्रेज है. फिल्म के डायलॉग आज भी लोगों को जुबान पर रहते हैं. वहीं फिल्म में अमिताभ बच्चन के लुक ने भी काफी सुर्खियां बटोरी थी. क्योंकि इसमें वो एक खास तरह की जैकेट पहने हुए थे, जिसकी एक बाजू स्टील के तारों से बनाई  गई थी. वहीं अब सालों बाद बिग बी ने ये जैकेट अपने एक दोस्त को गिफ्ट कर दी है. जिसका खुलासा खुद एक्टर ने किया है.  

फैन ने जैकेट को लेकर किया ट्वीट

दरअसल तुर्की अललशिख नाम के एक शख्स ने बीते दिन अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘शहंशाह’ के से कुछ तस्वीरें शेयर करते हुए ट्विटर पर लिखा था, “ दुनिया के बेहतरीन और दिग्गज कलाकारों में शामिल… आप सिर्फ भारत नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक सम्मान की बात हैं..आपने मुझे जो तोहफा भेजा है..उसके लिए बहुत शुक्रिया..मेरे लिए ये बहुत ज्यादा मायने रखता है.”  

अमिताभ ने गिफ्ट की शहंशाह की जैकेट

वहीं अब बिग बी ने इस पोस्ट को अपने अकाउंट पर रीट्वीट किया और लिखा, “ मेरे प्यारे और सबसे विचारशील दोस्त, ये मेरे लिए बेहद सम्मान की बात है कि आपको स्टील आर्म वाली जैकेट का तोहफा मिल गया है.. जिसे मैंने अपनी फिल्म ‘शहंशाह’ में पहना था…किसी दिन मैं आपको बताऊंगा कि मैंने इसे कैसे हासिल किया था…आपको मेरी तरफ से बहुत सारा प्यार.” 

फिल्म में ये एक्टर भी आए थे नजर

बता दें कि अमिताभ बच्चन की ये फिल्म साल 1988 में रिलीज हुई थी. जिसका निर्देशन टीनू आनंद ने किया था. फिल्म में उनके साथ मीनाक्षी शेषाद्रि, प्राण, कादर खान और अमरीश पुरी जैसे दिग्गज कलाकार भी नजर आए थे.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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