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पंचतत्व में विलीन हुईं सुलोचना लाटकर, राजकीय सम्मान के साथ दी गई अंतिम विदाई

Sulochana Latkar Funeral: बॉलीवुड की दिग्गज अभिनेत्री सुलोचना लाटकर (Sulochana Latkar) ने 4 जून को अंतिम सांस ली थी. आज शाम यानि 5 जून की शाम को उन्हें पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई. सुलोचना लाटकर का अंतिम संस्कार (Sulochana Latkar Funeral) दादर के शिवाजी पार्क श्मशान घाट में शाम करीब 5.30 बजे हुआ. इस दौरान उन्हें तिरंगे में लपेट कर पूरा राजकीय सम्मान दिया गया.

राजकीय सम्मान के साथ हुआ सुलोचना का अंतिम संस्कार

सुलोचना लाटकर पिछले काफी वक्त से बीमार चल रही थी. जिसके चलते उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. जहां इलाज के दौरान 4 जून को उनका निधन हो गया. एक्ट्रेस ने 94 साल की उम्र में मुंबई के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली और उन्हें उनका आज शाम को पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया. वहीं इससे पहले सुलोचना लाटकर के अंतिम दर्शन के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, सचिन पिलगांवकर और राज ठाकरे सहित कई अन्य दिग्गज हस्तियां उनके घर पहुंची थी.

कौन थीं सुलोचना लाटकर?

बता दें कि सुलोचना लाटकर हिंदी सिनेमा की पॉपुलर एक्ट्रेस थीं. जिन्होंने हिंदी और मराठी सहित 300 फिल्मों में काम किया था. एक्ट्रेस ने अपने करियर में ज्यादातर एक्टर्स की मां का रोल निभाया था. सुलोचना को पद्म श्री पुरस्कार और साल 2009 में महाराष्ट्र सरकार की ओर से प्रतिष्ठित महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है.

इन फिल्मों में काम कर चुकी हैं एक्ट्रेस

बात करें एक्ट्रेस की फिल्मों की तो उसमें ‘दिल्ली दूर नहीं’, ‘सुजाता’, ‘आए दिन बहार के’, ‘दिल देके देखो’, ‘आशा और मजबूर’, ‘नई रोशनी’,’ आई मिलन की बेला’, ‘गोरा और काला’, ‘देवर’, ‘बंदिनी’ जैसी कई हिट फिल्में शामिल है.

इसके अलावा मराठी फिल्मों में उन्होंने ‘ससुरवास’, ‘मीठा भाकर’, ‘संगते आइका’ और ‘शक्ति जाओ’ जैसी फिल्मों में लोकप्रिय भूमिका निभाई है.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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