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लोग फिर मुझे शादी में परफॉर्म करने क्यों बुलाते? अपने गानों को लेकर हनी सिंह ने कही ये बात

Honey Singh On Misogyny: सिंगर और रैपर हनी सिंह (Honey Singh) अपने नए म्यूजिक एल्बम 3.0 को लेकर सुर्खियों में छाए हुए हैं. इन दिनों वह अपने इस एल्बम का जोर-शोर से प्रमोशन कर रहे हैं. इस बीच हनी सिंह ने अपने गानों की लिरिक्स को लेकर हुए विवादों पर खुलकर बात की. उन्होंने बताया कि अगर उनके गानों में महिलाओं के लिए अपमानजनक शब्द होते तो कोई भी उन्हें अपनी बेटी की शादी में परफॉर्म करने के लिए नहीं बुलाता.

लोग फिर मुझे शादी में परफॉर्म करने क्यों बुलाते?

पिंकविला के साथ इंटरव्यू के दौरान हनी सिंह ने कहा, ‘अगर ऐसा होता तो लोग मेरे गाने क्यों सुनते? अगर मेरे गानों में महिलाओं के लिए अपमानजनक शब्द होते तो फिर कोई मुझे अपनी बेटी की शादी में परफॉर्म करने के लिए क्यों बुलाता? बहुत सारे भाई-बहन मेरे गानों पर डांस करते हैं. मैंने पिछले 15 सालों में कई शादियां में परफॉर्म किया है. आंटीज स्टेज पर आती हैं और मेरे साथ आंटी पुलिस बुला लेगी गाने पर डांस करती हैं. ऐसा बिल्कुल भी नहीं है जैसा कहा जा रहा है.’ 

लोग आजकल ज्यादा सेंसेटिव हो गए हैं

हनी सिंह ने आगे कहा, ‘लोग ज्यादा सेंसेटिव हो गए हैं. लोग जितने पढ़-लिख रहे हैं वे ज्यादा सेंसेटिव हैं और चीजों को गलत तरीके से ले रहे हैं. एक गाना था कि मुझको राणा जी माफ करना. इस गाने का मतलब है कि मैं अपने हसबैंड के बहनोई के साथ जाकर सो गई हूं, तो मुझे माफ कर देना, तो क्या ये मिसोजिनी नहीं है.’

पहले लोग ज्यादा इंटेलेक्चुअल थे 

उन्होंने बताया, ‘पहले लोग ज्यादा इंटेलेक्चुअल थे. पढ़े-लिखे होने में और इंटेलेक्चुअल होने में फर्क है. आज हम इंटेलेक्चुअल उसे कहते हैं, तो ज्यादा पढ़ा-लिखा होता है. जैसे किसी ने एमफिल जैसी पढ़ाई की है. लोग बोलते हैं कि हां यार ये इंटलेक्चुअल है. पहले लोगों की सोच बड़ी थी. एंटरटेनमेंट को लोग एंटरटेनमेंट की तरह लेते थे. आज ऐसा हो गया कि अगर कोई एक्ट्रेस बिकिनी पहन ले तो लोग उसके पीछे पड़ जाते हैं. क्यों नहीं पहन सकती है कि वो बिकिनी?

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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