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‘भूत’ बनकर एक्टिंग की दुनिया में आए थे मनीष पॉल, कभी जेब में नहीं होते थे किराया भरने के भी पैस

Maniesh Paul Unknown Facts: कोई भी कलाकार हीरो या विलेन बनकर छोटे और बड़े पर्दे पर एंट्री करता है, लेकिन उन्होंने एक्टिंग की दुनिया में पहली दस्तक ‘भूत’ बनकर दी थी. यह शख्स कोई और नहीं, बल्कि मनीष पॉल हैं, जिन्होंने 3 अगस्त 1981 के दिन दिलवालों की दिल्ली में जन्म लिया था. बर्थडे स्पेशल में हम आपको मनीष की जिंदगी के उन किस्सों से रूबरू करा रहे हैं, जिनसे शायद आप भी अनजान होंगे. 

कई विधाओं में माहिर हैं मनीष पॉल

सियालकोट से दिल्ली आए पंजाबी गड़रिया परिवार में जन्मे मनीष पॉल आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. कारोबारी घराने से ताल्लुक करने वाले मनीष सिर्फ एक्टिंग में ही अपना हुनर नहीं दिखाते हैं, बल्कि वह मॉडलिंग, एंकरिंग, सिंगिंग और टेलीविजन प्रेजेंटर के रूप में भी नाम कमा चुके हैं. इसके अलावा वह आरजे और वीजे की जिम्मेदारी भी बखूबी उठा चुके हैं. हालांकि, कामयाबी के मुकाम पर पहुंचने से पहले मनीष को काफी संघर्ष करना पड़ा. 

संघर्ष की पटरी से गुजरी मनीष की गाड़ी

बता दें कि मनीष ने एक्टिंग के बारे में कभी सोचा तक नहीं था. वह तो कॉलेज के दिनों में स्टेज पर होस्ट करते थे, जिससे समा बंध जाता था. कुछ दोस्तों ने मनीष को उनकी इस काबिलियत का इल्म कराया तो उन्होंने होस्टिंग की दुनिया को ही अपना करियर बनाने की ठान ली और मुंबई आ गए. हालांकि, कामयाबी हासिल करने के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा. दरअसल, 2002 के दौरान मनीष को एक चैनल का शो संडे टैंगो होस्ट करने का मौका मिला. इसके बाद उन्होंने पहले वीजे तो बाद में आरजे के रूप में भी काम किया, लेकिन 2008 के दौरान करीब एक साल तक वह पूरी तरह बेरोजगार रहे. उस दौरान उनके पास मकान का किराया देने तक के पैसे नहीं होते थे. 

ऐसे शुरू हुआ मनीष का करियर

मनीष की जिंदगी ने करवट उस वक्त ली, जब वह ‘डांस इंडिया डांस’ शो से जुड़े. उन्होंने साल 2012 से 2020 तक इस रियलिटी शो को होस्ट किया. इसके बाद उन्होंने घोस्ट बना दोस्त सीरियल में घोस्ट का किरदार निभाकर घर-घर में पहचान हासिल की. इसके अलावा वह मिक्की वायरस, तीस मार खां और जुग जुग जियो समेत कई बॉलीवुड फिल्मों में भी अपनी अदाकारी का जादू दिखा चुके हैं. 

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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