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सार्थ बाबू का हुआ निधन, 72 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

Sarath Babu passes away: साउथ सिनेमाई दुनिया से एक बेहद दुख भरी खबर सामने आई है। तेलुगु और तमिल फिल्म इंडस्ट्री के जाने-माने दिग्गज कलाकार सार्थ बाबू का आज निधन हो गया है। वो महज 72 साल के थे। सार्थ बाबू फिल्मों में काफी एक्टिव थे। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो एक्टर लंबे वक्त से बीमार चल रहे थे और हैदराबाद के एक अस्पताल में भर्ती थे जहां आज सुबह ही एक्टर ने अंतिम सांस ली। मिली जानकारी के मुताबिक वो उम्र संबंधी बीमारियों की वजह से बीमार थे और अस्पताल में भर्ती थे। जहां मल्टीपल ऑर्गेन फेलियर की वजह से सार्थ बाबू की जान गई। इस बुरी खबर के सामने आते ही साउथ फिल्म इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ पड़ी है। सार्थ बाबू के निधन पर चाहने वाले अपना शोक जता रहे हैं।

200 से ज्यादा फिल्में कर चुके थे सार्थ बाबू

साउथ फिल्म अभिनेता सार्थ बाबू ने मूल रुप से तमिल और तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री में काम किया था। उन्होंने अपने फिल्मी करियर में करीब 200 फिल्में दर्शकों को दीं। ये फिल्में मुख्य रूप से तेलुगु और तमिल भाषा के अलावा कन्नड़ और कुछ मलयालम और हिंदी सिनेमा की भी थीं। एक्टर ने साल 1973 में तेलुगु फिल्मी इंडस्ट्री में कदम रखा था। बाद में एक्टर को पहचान मुख्यतौर पर तमिल फिल्मों से मिली।

पहले भी फैली थी सार्थ बाबू के निधन की अफवाह

बता दें कि सार्थ बाबू लंबे वक्त से बीमार चल रहे थे। जिसकी वजह से उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। बाद में सार्थ बाबू की मृत्यु की खबर 3 मई के दिन सामने आई थी। हालांकि बाद में परिवार ने इन खबरों का खंडन किया और बताया कि उनका इलाज अभी भी चल रहा है। साथ ही परिवार ने झूठी खबरें न फैलाने की अपील भी की थी। मगर अब सामने आ रहीं मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो एक्टर का आखिरकार निधन हो चुका है।

सार्थ बाबू के निधन से सदमे में साउथ फिल्म इंडस्ट्री

साउथ फिल्म स्टार सार्थ बाबू के निधन से तमिल और तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री में खलबली मच गई है। सार्थ बाबू के निधन पर कई फैंस और फिल्मी सितारे अपना दुख व्यक्त कर रहे हैं। सार्थ बाबू ने लंबे वक्त तक दर्शकों का मनोरंजन किया था। उनके आक्समिक निधन पर फैंस भी सदमे में हैं।

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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