बॉलीवुड और मनोरंजन

अगर ये एक्टर ना ठुकराता ऑफर…तो आज सत्याराज नहीं होते ‘कटप्पा मामा’

Sanjay Dutt Was First Choice In Baahubali Series Big Roll: ‘मुन्ना भाई’ और ‘संजू बाबा’ के नाम से मशहूर संजय दत्त का बॉलीवुड (Bollywood) में एक अलग ही जलवा रहा है. संजय दत्त ने अपने करियर (Career) में ‘वास्तव (Vaastav)’ से लेकर ‘लगे रहो मुन्ना भाई (Lage Raho Munna Bhai)’ जैसी एक से बढ़कर एक शानदार फिल्मों में काम कर चुके हैं. हालांकि संजय दत्त (Sanjay Dutt) ने कई बेहतरीन मूवीज को इनकार भी किया है. संजय दत्त की मना की हुई फिल्मों (Rejects Movies) में एक बहुत ही बड़ा नाम ‘बाहुबली (Baahubali)’ का भी है. आइए जानते हैं कि इस फिल्म में संजय दत्त को कौन सा बड़ा रोल (Big Roll) ऑफर किया गया था?

ये रोल हुआ था ऑफर
ई टाइम्स की खबर के मुताबिक एसएस राजामौली ने जब ‘बाहुबली’ को बनाने का फैसला किया तो फिल्म के एक बहुत ही शानदार और बड़े रोल ‘कटप्पा’ के लिए संजय दत्त ही पसंद थे. इस रोल के लिए सबसे पहले एसएस राजामौली संजू बाबा के पास गए.

संजय दत्त ने नहीं लिया इंट्रेस्ट
अपने करियर में कई जबरदस्त किरदारों को यादगार बनाने वाले संजय दत्त ने ‘कटप्पा’ के रोल में कोई इंट्रेस्ट नहीं लिया. संजय दत्त को इस बड़े रोल में दम नहीं लगा और उन्होंने ये किरदार निभाने से मना कर दिया.


सत्याराज ने किया वो रोल
संजय दत्त (Sanjay Dutt) के रोल में कोई इंट्रेस्ट न लेने के बाद एसएस राजामौली ‘कटप्पा’ के किरदार के लिए साउथ के बड़े एक्टर सत्याराज (Sathyaraj) के पास गए. सत्याराज को रोल में दम लगा और उन्होंने फिल्म (Movie) में काम करने के लिए फौरन हां कह दी. इसके बाद सत्याराज ने अपनी शानदार एक्टिंग (Acting) से ‘कटप्पा’ का रोल अमर कर दिया. दर्शकों (Viewers) ने फिल्म के साथ सत्याराज के काम की काफी तारीफें की. बॉक्स ऑफिस (Box Office) पर ‘बाहुबली (Baahubali)’ बहुत बड़ी हिट साबित हुई.

जब सलमान खान के गुस्से ने इस मूवी से कटवा दिया था ऐश्वर्या का पत्ता, फिल्म है ओटीटी पर अवेलेबल

Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button