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प्रियंका चोपड़ा बेटी मालती के लिए छोड़ सकती हैं अपना करियर, बोलीं- ‘देश भी बदल दूंगी’

Priyanka Chopra: एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक अपनी अच्छी खासी पहचान बना चुकी हैं. हाल फिलहाल उनके पास दोनों ही फिल्म इंडस्ट्री से कई प्रोजेक्ट्स हैं. इस दौरान उन्होंने कुछ ऐसी बात कही जो आपको चौंका सकती है. प्रियंका ने कहा है कि वो बेटी मालती के लिए अपना करियर छोड़ सकती हैं. प्रियंका ने इस दौरान अपने पैरेंट्स का उदाहरण देते हुए उनके लिए किए गए त्याग को बताया.

बेटी के लिए करियर छोड़ सकती हैं प्रियंका चोपड़ा
प्रियंका चोपड़ा 40 साल की उम्र में बेटी मालती की मां बनी हैं. इस दौरान उनका करियर भी काफी अच्छा चल रहा है. ऐसे में प्रियंका ने हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि वो बेटी मालती के लिए अपना करियर भी छोड़ सकती हैं. अगर उनकी बेटी कहे कि उन्हें देश बदलना है तो एक्ट्रेस वो भी करने के लिए तैयार हैं.

‘बिना सवाल किए छोड़ दूंगी अपना करियर’
मूवी सिटीज के साथ हुए पैरेंट्स डिस्कशन में प्रियंका ने फेमिना से हुई बातचीत में कहा, ‘उस समय मैंने इसे ग्रांटेड लिया था. ये कुछ ऐसा है कि बिल्कुल ये आपके पेरेंट्स का ही काम है. मेरा करियर मायने रखता है. मैंने ये तब तक नहीं सोचा था जब तक मैं अपनी बुक पर काम नहीं कर रही थी. फिर मैंने सोचा कि अब मैं 40 साल की हो गई हूं. अब मुझसे पूछा जाएगा कि मैं अपना करियर छोड़ दूं और देश बदल दूं तो मैं अपनी बेटी के लिए ये करुंगी.’

‘मेरे पेरेंट्स ने मेरे लिए त्याग किया’
प्रियंका ने आगे बताया, ‘फिर भी यह एक बहुत बड़ा बलिदान है और हम बहुत खुशनसीब हैं कि हमें ऐसे माता-पिता मिले हैं जिन्होंने ऐसा किया, लेकिन, ऐसे परिवार भी हैं जो सामाजिक दबाव में हैं, जो नहीं जानते कि वो अपनी बेटियों को अप्रिशिएट नहीं करते. इसलिए, मुझे लगता है कि एक चीज जो हमें करने की आवश्यकता है, वो है बच्चों की परवरिश के दौरान एक-दूसरे से बातचीत करना, अपने बेटों को इस तरह से पालना, जिसमें महिलाओं के लिए सम्मान हो, समाज में अवसर पैदा करना जहां महिलाएं सत्ता के पदों पर हों. न केवल नौकरी पा लेना, बल्कि वास्तव में डिसीजन मेकर होना. मुझे लगता है कि यही हमारे लिए बदलने जा रहा है.’

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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