टैकनोलजी

बच्चों को मोबाइल पर वीडियो देखने की पड़ गई है आदत? इन तरीकों से कर सकते हैं फोन को दूर

<p style="text-align: justify;">स्मार्टफोन को इस्तेमाल हमारे आसपास इतना बढ़ गया है कि बड़ों को तो छोड़ दीजिए नन्हें हाथों में भी अब मोबाइल दिखाई देते हैं. छोटे बच्चें मोबाइल पर कॉर्टून के साथ ऑनलाइन गेमिंग का लुफ्त उठाते हैं, लेकिन ये मजा बच्चों के लिए बड़ी सजा बनकर उभर रहा है. आपको बता दें कि मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल कई तरीके से हानिकारक होता है, जिसमें बड़ों के साथ बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है.</p>
<p style="text-align: justify;">कई स्टडी में दावा किया गया है कि अगर बच्चें ज्यादा मोबाइल इस्तेमाल करते हैं, तो उनकी आंखों की रोशनी कम हो सकती है. इसके साथ ही बच्चें चिड़चिडे़ हो सकते हैं और उन्हें एंग्जायटी, डिप्रेशन और सेल्फ डाउट्स जैसी गंभीर समस्या हो सकती है. इसलिए यहां हम आपके लिए बच्चों को मोबाइल से दूर रखने के तरीके बताने जा रहे हैं.</p>
<h3 style="text-align: justify;">फिजिकल एक्टिविटीज के लिए करें प्रोत्साहित</h3>
<p style="text-align: justify;">बच्चों को अगर मोबाइल से दूर रखना है, तो उन्हें फिजिकल एक्टिविटीज और आउटडोर गेम के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. बच्चें जितना ज्यादा घर से बाहर खेलेंगे उनका शारीरिक और मानसिक विकास उतनी ही तेजी और मजबूती के साथ होगा.</p>
<h3 style="text-align: justify;">मनोरंजन के लिए चुनें कुछ और</h3>
<p style="text-align: justify;">बच्चे फोन का इस्तेमाल ज्यादातर अपने मनोरंजन के लिए ही करते हैं. अगर आप बच्चे को मनोरंजन के लिए मोबाइल देंगे तो हर समय वह टाइमपास के लिए फोन में ही लगे रहेंगे. ऐसे में टीवी, किताबें पढ़ना और स्पीकर पर गाने सुनने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करना चाहिए.</p>
<h3 style="text-align: justify;"><strong>मोबाइल के ऑप्शन में कंप्यूटर बेहतर</strong></h3>
<p style="text-align: justify;">अगर बच्चों को पढ़ाई के लिए इंटरनेट की जरूरत है, तो उन्हें मोबाइल की जगह कंप्यूटर या लैपटॉप उपलब्ध कराना चाहिए. आपको बता दें लैपटॉप और कंप्यूटर पर आप बच्चों की एक्टिविटी को अच्छे से नजर में रख सकते हैं और इससे बच्चों की सेहत पर भी बहुत कम नुकसान होगा.</p>
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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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