बॉलीवुड और मनोरंजन

‘मैं खुद को शीशे में थप्पड़ मारता था…’ गोविंदा ने किया 100 करोड़ की फिल्म छोड़ने का खुलासा

Govinda On Rejecting Project: बॉलीवुड एक्टर गोविंदा (Govinda) हिंदी सिनेमा के बड़े सुपरस्टार्स में से एक हैं. उन्होंने राजा बाबू, कुली नंबर 1, हीरो नंबर 1, दुल्हे राजा, बड़े मियां छोटे मिया और पार्टनर जैसी कई सुपरहिट फिल्में दी हैं. गोविंदा ने अब लंबे समय से फिल्मों से दूरी बनाई हुई है. उन्होंने फिल्मों से दूरी बनाने के पीछे की वजह अब बताई है.  उन्होंने हाल ही में मीडिया से बातचीत की थी. जिसमें उन्होंने बताया है कि बीते साल उन्होंने 100 करोड़ के प्रोजेक्ट को मना कर दिया.

गणेश चतुर्थी पर मीडिया से बात करते हुए गोविंदा ने बताया कि वह कोई भी प्रोजेक्ट को चुनने में बहुत सोचने लगे हैं. उन्होंने कहा- मैं किसी भी काम को आसानी से हां नहीं करता हूं. लेकिन जिन लोगों को लगता है कि मुझे काम नहीं मिल रहा है तो मैं उनको बता दूं मुझपे कृपा है बप्पा की. मैंने बीते साल 100 करोड़ का प्रोजेक्ट छोड़ दिया.

खुद को थप्पड़ मारा था
गोविंदा ने आगे कहा- मैं खुद को शीशे के सामने खड़े होकर थप्पड़ मार रहा था क्योंकि मैं कोई प्रोजेक्ट साइन नहीं कर रहा था. वो मुझे बहुत सारे पैसे ऑफर कर रहे थे लेकिन मैं कोई भी साधारण सा रोल नहीं करना चाहता था. मैं कुछ ऐसा करना चाहता था जो मैंने पहले किया है. कुछ उस लेवल का.

हाल ही में अमीषा पटेल ने बताया था कि गदर 2 के डायरेक्टर ममता कुलकर्णी को सकीना और गोविंदा को तारा सिंह के रोल के लिए कास्ट करना चाहते थे. उन्होंने आगे कहा- मुझे सकीना के रोल में जी ने कास्ट किया है मिस्टर अनिल शर्मा ने नहीं. मेरे लिए गदर हमेशा से सनी देओल को लेकर थी. बल्कि नितिन केनी की वजह से ही मैं गदर एक प्रेम कथा में थी और अनिल शर्मा मुझसे ज्यादा ममता कुलकर्णी को रख रहे थे. वह चाहते थे गोविंदा तारा सिंह बनें लेकिन जी सनी को बनाना चाहते थे.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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