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नील मोहन को यू-ट्यूब की कमान, ​​स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी​ से की है पढ़ाई ​​​

New Youtube CEO: ग्लोबल ऑनलाइन वीडियो शेयरिंग प्लेटफॉर्म यू-ट्यूब की चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर सुसान डायने वोज्स्की ने आज अपने पद से इस्तीफा दे दिया. सीईओ वोज्स्की के इस्तीफे के बाद अब भारतीय मूल के नील मोहन को यू-ट्यूब का सीईओ बनाया जा रहा है. इससे पहले नील मोहन यू-ट्यूब में ही चीफ प्रोडक्ट ऑफिसर के पद पर तैनात थे.

YouTube की सीईओ सुसान वोजिकी ने आज अपना इस्तीफा दिया. Wojcicki पिछले नौ वर्षों से यू-ट्यूब का नेतृत्व कर रही थीं. अब उनके बाद कंपनी में ही चीफ प्रोडक्ट ऑफिसर पर तैनात नील मोहन इस जिम्मेदारी को निभाएंगे. नील मोहन ने अपनी पढ़ाई स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी से की है. रिपोर्ट्स के अनुसार उन्होंने अपने करियर की शुरुआत ग्लोरफाइड टेक्निकल सपोर्ट से की थी. जहां नील को 60,000 डॉलर वेतन मिलता था.

नील मोहन ने एसेंचर में सीनियर एनालिस्ट के पद पर भी सेवाएं दी हैं. इसके बाद वह DoubleClick Inc से जुड़े और यहां उन्होंने अलग-अलग रोल में कार्य किया. नील मोहन ने इस कंपनी में 3 साल 5 महीने डायरेक्टर, ग्लोबल क्लाइंट सर्विसेज के पद पर काम किया. जबकि उन्होंने लगभग 2 साल 7 माह तक कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट बिजनेस ऑपरेशन की जिम्मेदारी संभाली थी. इसके बाद वह माइक्रोसॉफ्ट से जुड़े और यहां चार महीने काम करने के बाद वह फिर से DoubleClick Inc के साथ जुड़ गए जहां उन्होंने करीब 3 साल तक अपनी सेवाएं दीं.  

2015 से यू-ट्यूब में चीफ प्रोडक्ट ऑफिसर

DoubleClick Inc के साथ अपनी दूसरी पारी को विराम देने के बाद वह गूगल के साथ जुड़े. जहां उन्होंने बतौर Senior Vice President, Display and Video Ads कमान संभाली और 2015 में उन्हें यू-ट्यूब का चीफ प्रोडक्ट ऑफिसर बनाया गया. जिसके बाद अब यू-ट्यूब की चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर सुसान डायने वोज्स्की के रिजाइन के बाद उन्हें यू-ट्यूब के नए सीईओ की भूमिका में देखा जाएगा. इसके अलावा वह कई कंपनियों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में भी शामिल हैं.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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