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AI खाएगा 84 फीसदी सरकारी नौकरियां! इस रिपोर्ट में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

Artificial Intelligence: आर्टिफिशयल इंटेलिजेस (AI) से अब दुनिया का हर शख्स वाकिफ हो चुका है. इस वक्त टेक वर्ल्ड में अगर किसी टर्म की सबसे ज्यादा चर्चा है, वो एआई ही है. आए दिन हम सुनते रहते हैं कि AI लोगों की नौकरियां खा जाएगा. कोई AI को अपना दोस्त मान रहा है तो किसी की सोच इसको लेकर बिलकुल अलग है. 

आज जिन नौकरियों पर हम काम कर रहे हैं उनमें से बहुत सारी नौकरियां ऐसी हैं, जो आने वाले वक्त में खत्म हो सकती हैं. ऐसा हम नहीं कह रहे, बल्कि एक ताजी रिपोर्ट में खुलासा किया गया है. दरअसल, आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस को लेकर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें कहा गया है कि एआई लगभग 84 प्रतिशत सरकारी नौकरियां खा सकता है. 

इस रिसर्च में हुआ बड़ा खुलासा 

The Alan Turing Institute की ओर से एक रिसर्च किया गया है, जिसमें 200 सरकारी नौकरियों को शामिल किया गया. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि ये सर्विसेज ऐसी हैं, जिनमें अगर मानव दखल न दे तो भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. 

इसका मतलब ये है कि इस काम को एआई के हवाले से भी किया जा सकता है. उदाहरण के तौर पर देखें तो इनमें पासपोर्ट की प्रोसेसिंग, वोटिंग के लिए रजिस्ट्रेशन आदि सर्विसेज शामिल हैं.

यह स्टडी यूके सरकार के कामकाज को लेकर की गई, जिसमें पाया गया कि इन गर्वर्मेंट सर्विसेज में उन सभी जॉब्स को ऑटोमेटेड किया जा सकता है जो कि लगभग 14.3 करोड़ ट्रांजैक्शन करती हैं. इस तरह सर्विस पर ऑटोमेशन लागू कर दिया जाए तो ट्रांजैक्शन के लिए मानव दखल खत्म हो सकता है. 

जॉब सिक्योरिटी के लिए बड़ा रिस्क

इससे पहले जनवरी महीने में इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (IMF) की चीफ क्रिस्टेलिना ज्योर्जिवा ने कहा था कि AI दुनियाभर में जॉब सिक्योरिटी के लिए बड़ा रिस्क पैदा कर सकता है. उन्होंने ये भी कहा था कि चुनौतियों के साथ ही इसमें अपार अवसर भी हैं, जिससे प्रोडक्टिविटी को बढ़ाया जा सकता है और ग्लोबल ग्रोथ को बूस्ट दिया जा सकता है. ज्योर्जिवा ने कहा था कि AI दुनियाभर में 60 प्रतिशत जॉब्स को प्रभावित कर सकता है. 

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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