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जब शूटिंग के दौरान संजय दत्त को किडनैप करने पहुंचे गए थे डाकू, दिलचस्प है किस्सा

Sanjay Dutt Shocking Revelation: बॉलीवुड के खलनायक संजय दत्त आए दिन किसी ना किसी वजह से चर्चा में बने रहते हैं. वहीं एक समय था जब फिल्मों से ज्यादा संजू बाबा विवादों को लेकर सुर्खियों में छाए रहते हैं. लेकिन क्या आपने कभी ये सुना है कि संजय को कभी किसी गुंडों ने किडनैप किया था? सुनने में ये थोड़ा अटपटा सा लग रहा है लेकिन ये बात सच है. ये घटना सालों पुरानी है जिसका खुलासा खुद संजय दत्त ने किया था.

संजय दत्त को किडनैप करने पहुंचे थे डाकू
ये किस्सा है साल 1960 के दशक में संजय दत्त के पिता सुनील दत्त की फिल्म ‘मुझे जीने दो’ की शूटिंग के दौरान का है. इस बात का खुलासा संजय दत्त ने कपिल शर्मा के शो पर किया है. उन्होंने बताया था कि बचपन में उन्हें डकैतों ने उनका अपहरण करने की कोशिश की थी. 

संजू बाबा कहते हैं कि उन दिनों रूपा डकैत का खौफ बना हुआ था. वे एक दिन फिल्म की शूटिंग पर आ पहुंचें. मैं उस वक्त बच्चा था. मेरे पापा जीने दो की शूटिंग कर रहे थे. वे आए और उन्होंने मुझे गोद में बैठाया और मेरे पापा से पूछा कि फिल्म बनाने में कितने पैसे खर्चे हुए हैं. जवाब में दत्त साहब ने कहा कि 15 लाख रुपये. 

पिता ने ऐसे की थी बगावत
संजय दत्त आगे बताते हैं कि डकैतों ने पहले मुझे गोद में बिठाया और फिर मेरे पापा से पूछा कि अगर हम इस बच्चे को किडनैप करते हैं तो आप इसका कितना पैसा दोगे? ये सुनते ही मेरे पापा घबरा गए और चालकी के साथ उन्होंने मुझे अपनी गोद में वापस लिया. फिर फिल्म की शूटिंग उसी वक्त कैंसिल करना पड़ी और अगले दिन पापा ने मुझे और मेरी मां को वापस मुंबई भेज दिया. 

साउथ की फिल्म में मचाएंगे धमाल
संजय दत्त के वर्कफ्रंट आखिरी बार वे केजीएफ चैप्टर 2 में नजर आए थे, जहां उनके काम को खूब सराहा गया. इसके अलावा सुपरस्टार लियो में भी नजर आ चुके हैं. वहीं अब वे साउथ की एक और फिल्म में धमाल मचाने वाले हैं. खबरें हैं कि राम चरण की फिल्म ‘आरसी 16’ में अहम भूमिका निभाने वाले हैं. हांलाकि, मेकर्स की तरफ ने अभी तक औपचारिक रूप से इस बात की घोषणा नहीं हुई है.


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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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