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Sam Bahadur Movie Review: फिल्म ‘सैम बहादुर’ में विक्की कौशल की एक्टिंग ने जीता दिल

फिल्म: सैम बहादुर
स्टारकास्ट: विक्की कौशल, सान्या मल्होत्रा, फातिमा सना शेख, मोहम्मद जीशान अय्यूब, नीरज काबी
निर्देशक: मेघना गुलजार
रिलीज डेट: 1 दिसंबर, 2023 Also Read – Sam Bahadur Screening: ‘सैम बहादुर’ देखने पहुंचे कटरीना कैफ, विक्की कौशल ने मम्मी-पापा को देखते ही छू लिए पैर

विक्की कौशल स्टारर ‘सैम बहादुर’ 1 दिसंबर को सिनेमाघरों में दस्तक देने वाली है। ये फिल्म फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की बायोपिक है। मेघना गुलजार के डायरेक्शन में बनने वाली सैम बहादुर में विक्की कौशल के अलाना सान्या मल्होत्रा और फातिम सना शेख नजर आने वाली हैं। फिल्म सैम बहादुर का जब से ट्रेलर रिलीज किया गया तब से विक्की कौशल की एक्टिंग को देखने के लिए फैंस उतावले हो गए हैं। वहीं, फिल्म में मेघना गुलजार का जबरदस्त डायरेक्शन देखने को मिला है जिसके चलते इसमें चार चांद लग गए। आइए जानते हैं कि विक्की कौशल की फिल्म ‘सैम बहादुर’ कैसी है। यहां पर पढ़े फिल्म का रिव्यू…

फिल्म ‘सैम बहादुर’ की कहानी

फिल्म ‘सैम बहादुर’ में फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की जिंदगी की कहानी दिखाई गई है। सैम मानेकशॉ ने आर्मी को अपने जीवन के 40 साल दिए और वह 5 युद्धों का हिस्सा रहे हैं। मेघना गुलजार ने कुछ घंटों में सैम मानेकशॉ को पूरे जीवनकाल को बखूबी पर्दे पर दिखाया है। मेघना गुलजार को पिछली फिल्मों को देखा जाए तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्हें दिल से फिल्में बनाने की आदत है। उन्होंने फिल्म सैम बहादुर के साथ भी ऐसा किया है। मेघना गुलजार की फिल्म की कहानी सिर्फ युद्ध के आसपास नहीं बुनी गई है बल्कि सैम मानेकशॉ के उस किरदार को भी दिखाया गया है कि जिसमें उन्होंने धैर्य, हास्य की भावना और सहानुभूति से लोगों का दिल भी जीत लिया। फिल्म में सैम मानेकशॉ उनके आर्मी के प्रति कर्तव्यों के साथ ही अपने परिवार, बच्चों, निजी कर्मचारियों, सहकर्मियों और सेना के जवानों के साथ उनके समय को भी दिखाया जाता है। सैम मानेकशॉ की कहानी इस बात पर जोर देती है कि पर्सनल लाइफ हो या प्रोफेशनल लाइफ, सेना का जवान हमेशा जेंटलमैन होता है। Also Read – Sam Bahadur Advance Booking: बंपर ओपनिंग की तैयारी में विक्की कौशल की ‘सैम बहादुर’, बिक गए इतने टिकट

विक्की कौशल की एक्टिंग ने जीता दिल

‘सैम बहादुर’ में विक्की कौशल की एक्टिंग की बात करें तो ये फिल्म उन्हें दूसरा नेशनल अवॉर्ड दिला सकती है। विक्की कौशल इससे पहले फिल्म ‘उरी द सर्जिकल स्ट्राइक’ में आर्मी ऑफिसर के रोल में नजर आ चुके हैं। लेकिन फिल्म ‘उरी द सर्जिकल स्ट्राइक’ के विक्की कौशल और फिल्म सैम बहादुर के विक्की कौशल बिल्कुल अलग-अलग हैं। एक बात जरूर दोनों ही फिल्मों में विक्की कौशल समान रूप से अभूतपूर्व हैं। विक्की कौशल ने अपनी बेहतरीन एक्टिंग से एक बार फिर दिल जीत लिया है क्योंकि उन्होंने भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय और एक अविश्वसनीय व्यक्तित्व को जीवंत किया है। फिल्म ‘सैम बहादुर’ में विक्की कौशल ने अपनी चाल-ढाल से लेकर लुक और मुस्कुराहट तक अपने रोल के साथ न्याय किया है। फिल्म में फातिमा सना शेख ने इंदिरा गांधी का रोल किया और विक्की कौशल के साथ अपने सीन को बखूबी निभाया है। पूर्व पाकिस्तानी आर्मी जनरल याहा खान के रोल में जीशान अय्यूब को बहुत काम स्क्रीन स्पेस मिला है। नीरज काबी ने भी अपने रोल से लोगों को संतुष्ट किया है। कुल मिलाकर फिल्म की स्टारकास्ट पूरी तरह फिट बैठती है। Also Read – Tiger 3 में Katrina Kaif का टॉवल सीन देख हक्के-बक्के रह गए थे Vicky Kaushal, कहा- ‘मैं नहीं चाहता…’

फिल्म ‘सैम बहादुर’ में कमी

किसी भी युद्ध या भारतीय इतिहास पर बेस्ड फिल्म भावनाओं के जाने वाले गानों के बिना अधूरी है। फिल्म ‘सैम बहादुर’ में इस बात की कमी देखी गई। फिल्म में सैम मानेकशॉ की निजी जिंदगी के बारे में और भी ज्यादा दिखाया जा सकता था। इसके अलावा फिल्म में सैम मानेकशॉ (विक्की कौशल) और उनकी पत्नी (सान्या मल्होत्रा) के साथ उनके सीन को और अधिक दिलचस्प तरह से लिखा जा सकता था। सान्या मल्होत्रा के किरदार थोड़ा और काम किया जा सकता था। अगर आप एक सामान्य फिल्म देखने की उम्मीद कर रहे हैं जिसमें एक व्यक्ति अपने दुश्मन से लड़ रहा है तो ये आपके लिए नहीं है। फिल्म ‘सैम बहादुर’ को फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के जीवन को जानने के हिसाब से देख सकते हैं। बॉलीवुड लाइफ विक्की कौशल की फिल्म ‘सैम बहादुर’ को 3 स्टार देता है।

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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