जरूरत पड़ी तो मायावती और अखिलेश यादव एकसाथ हो सकते हैं। बुआ और भतीजे की जोड़ी साम्प्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए एक हो सकते हैं

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बीबीसी हिंदी के साथ फ़ेसबुक लाइव में कहा कि 11 मार्च का चुनावी नतीजा उनके पक्ष में आएगा.हालांकि उन्होंने यह भी संकेत दिए कि चुनाव परिणामों मे यदि उन्हें या किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलता है तो राष्ट्रपति शासन की जगह वो मायावती से हाथ मिलाना पसद करेंगें.(साभार बीबीसी हिंदी )
उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों पर विभिन्न टीवी चैनलों और सर्वे एजेंसियों के एग्जिट पोल ने राज्य में त्रिशंकु विधान सभा की आहट पैदा कर दी है। हालांकि, इसके स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि भाजपा राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने जा रही है। एबीपी न्यूज-लोकनीति के मुताबिक, यूपी की कुल 402 सीटों में से बीजेपी को 164-176 सीटें, सपा को 156-169 सीटें, बसपा को 60-72 सीटें और अन्य को 2-6 सीटें मिलने का अनुमान है। इंडिया टुडे-एक्सिस माइ इंडिया के मुताबिक सपा-कांग्रेस गठबंधन को 120, भाजपा को 185, बसपा को 90 और अन्य को 8 सीटें मिल सकती हैं। वहीं टाइम्स नाऊ-वीएमआर ने बीजेपी को 190-210 सीटें मिलने की संभावना जताई है। सीएनएन-न्यूज 18-एमआरसी के अनुसार, यूपी में बीजेपी गठबंधन को 185 सीटें मिलेंगी। समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन को टाइम्स नाऊ ने 110-130 सीटें मिलने का अनुमान लगाया है। वहीं सीएनएन-न्यूज 18-एमआरसी ने सपा-कांग्रेस को 120 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की है। यूपी में कुल 403 विधानसभा सीटें हैं और बहुमत के लिए 202 सीटों का आंकड़ा चाहिए।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर राज्य में त्रिशंकु विधान सभा हुई तो राजनीतिक विकल्प क्या हो सकते हैं? सरकार किसकी बन सकती है? या फिर राजनीतिक खींचतान में राज्य में राष्ट्रपति शासन तो नहीं लग जाएगा? इस बीच, यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने साफ संकेत दिया है कि वो बसपा के साथ हाथ मिला सकते हैं। उन्होंने कहा है कि यूपी में कोई नहीं चाहता है कि राष्ट्रपति शासन लगे। यानी तस्वीर साफ है कि जरूरत पड़ी तो मायावती और अखिलेश यादव एकसाथ हो सकते हैं। बुआ और भतीजे की जोड़ी साम्प्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए एक हो सकते हैं और साथ में कांग्रेस भी रह सकती है। अगर ऐसा होता है तो बिहार में लालू यादव और नीतीश कुमार द्वारा खींचे गए राजनीतिक लकीर पर उत्तर प्रदेश में चुनाव पूर्व न सही, चुनाव बाद ही महागठबंधन बन सकता है।
वैसे राजनीतिक जानकारों का कहना है कि साल 2019 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर बसपा, सपा और कांग्रेस की इसी में भलाई है कि वो महागठबंधन कर उत्तर प्रदेश में शासन करे। दिनों दिन हाथी की कुंद होती चाल से चिंतित मायावती के पास भी इससे बेहतर विकल्प नहीं हो सकता है क्योंकि अगर मायावती ऐसा नहीं करेंगी तो उन्हें भविष्य में और सिकुड़न का सामना करना पड़ सकता है। और ऐसा करती हैं तो वो न सिर्फ सत्ता में होंगी बल्कि 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को मजबूत स्थिति में लाने में भी सक्षम होंगी लेकिन मायावती और मुलायम सिंह के बीच पुरानी रंजिश इसमें बाधक बन सकती है