बॉलीवुड और मनोरंजन

‘एक सुपरस्टार की भी 10 फिल्में फ्लॉप होती हैं…’, नेपोटिज्म पर क्या-क्या बोले अरबाज खान?

Arbaaz Khan On Nepotism: बॉलीवुड में नेपोटिज्म को लेकर अक्सर सवाल खड़े होते रहते हैं. कई बार बी-टाउन के दिग्गज सितारों ने बेबाकी से इसपर अपनी राय रखते नजर आए हैं. अब अरबाज खान ने इसे लेकर अपनी राय पेश की है. उन्होंने किसी भी स्टारकिड की सक्सेस का क्रेडिट उनके फिल्मी बैकग्राउंड को देने को गलत बताया है. उन्होंने ये भी कहा कि चाहे कोई बॉलीवुड का कितना ही करीबी क्यों ना हो, उसे स्ट्रगल करना ही पड़ता है.

टाइमआउट विद अंकित से बातचीत के दौरान अरबाज खान ने कहा- ‘कुछ दरवाजे जरूर खुलते हैं अगर आपके पापा एक डॉक्टर या वकील हैं, तो आपकी पहुंच उन बिजनेस में दूसरे लोगों तक होगी. इसी तरह बतौर एक्टर अगर हम इंडस्ट्री में किसी से मिलना चाहते थे, तो यह हमारे लिए मुमकिन था क्योंकि हमारे पिता एक फिल्म स्क्रिप्ट राइटर और बॉलीवुड का हिस्सा थे.’ अरबाज के मुताबिक फिल्मी फैमिली से होने के नाते किसी से मिलना तो आसान हो जाता है पर उसकी वजह से किसी काम नहीं मिलता.

अरबाज-सोहेल को नहीं मिली सलमान जितनी कामयाबी
अरबाज खान ने कहा कि कोई भी बॉलीवुड कनेक्शन आपके 25 साल के करियर की गारंटी नहीं दे सकता. उन्होंने कहा, ‘इससे आपको ब्रेक मिल सकता है, लेकिन इससे आपका करियर नहीं बनेगा. सोहेल और मैं इस मामले में दूसरे सुपरस्टार्स या हमारे भाई सलमान खान जितने कामयाब नहीं हो सके, लेकिन हम अभी भी यहां हैं. हम काम कर रहे हैं और दूसरे कामों में बिजी हैं.’

‘एक सुपरस्टार की भी 10 फिल्में फ्लॉप होती हैं’
एक्टर ने आगे कहा, ‘कोई किसी की मदद नहीं करता. यह कहना गलत होगा कि अगर कोई एक्टर सफल होता है, तो यह उनके कनेक्शन या नेपोटिज्म की वजह से है. एक सुपरस्टार भी ऐसे दौर से गुजरता है जहां उनकी 10 फिल्में फ्लॉप हो जाती हैं और उन्हें समझ नहीं आता कि क्या करें. फिर वे किसी दूसरे सेलिब्रिटी के रिश्तेदारों की मदद कैसे कर सकते हैं?’

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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