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क्या हुआ जब OnePlus का फोन बन गया था X-ray मशीन? प्लास्टिक और कपड़ों के दिख रहा था आर-पार

OnePlus X Ray Phone : क्या आपने कभी किसी फोन के एक्स रे विजन बनने के बारे में सुना है? यह एक ऐसा कैमरा फीचर है. जो शायद ही किसी स्मार्टफोन में देखने को मिला हो. 2020 में लॉन्च हुए OnePlus 8 प्रो ने लोगों को चौंका दिया था. इस स्मार्टफोन में एक फिल्टर कुछ हद तक प्लास्टिक और कपड़ों के आरपार देखने में मदद कर रहा था. यह फिल्टर किसी एक्स-रे मशीन की तरह काम कर रहा था. उस समय कई फोटो और वीडियो भी वायरल हुए थे. आइए खबर में जानते हैं कि मामला क्या था? 

हल्के प्लास्टिक या कपड़े पर काम कर रहा था फिल्टर

OnePlus के इस फिल्टर को लेकर कई रिपोर्ट सामने आई थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि यह केवल बहुत पतले काले प्लास्टिक पर काम करता है जो पहले से ही सही रोशनी में थोड़ा सा पारदर्शी हो. फिल्टर हाई-एंड DSLR के मजबूत प्लास्टिक के बजाय टीवी रिमोट जैसी चीजों पर काम कर रहा था. जहां तक कपड़ों की बात है. यह कपड़ों के साथ हिट और मिस था. इसका मतलब है कि कुछ कपड़ों के आरपार यह दिखा रहा था. जबकि कुछ के नहीं. जिन कपड़ों के आरपार दिखाई दे रहा था. वे बेहद हल्के कपड़े थे. 

कंपनी ने क्या किया? 

द वर्ज ने इस मुद्दे को लेकर वनप्लस से सवाल किया. लेकिन कंपनी ने टिप्पणी करने से इंकार कर दिया था. फिर रिपोर्ट में कहा गया कि ऐसा लगता है कि यह प्रक्रिया फोन के इन्फ्रारेड सेंसर पर निर्भर करती है. जो एक प्रकार का विकिरण एकत्र करती है जो मानव आंख के लिए अदृश्य है. उदाहरण के लिए. सूर्य से पृथ्वी पर आने वाली लगभग आधी ऊर्जा इन्फ्रारेड के रूप में आती है. समस्या की गंभीरता को देखते हुए. वनप्लस ने एक software अपडेट के जरिए इस सुविधा को बंद कर दिया था. 

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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