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फ्लॉप फिल्मों के बाद भी एक लाख रुपये फीस बढ़ाते थे राजकुमार, जानें दिलचस्प किस्सा

बॉलीवुड इंडस्ट्री के बेहतरीन अभिनेताओं की बात की जाएगी तो राजकुमार का नाम जरूर लिया जाएगा। राजकुमार भले ही अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन वह लोगों को दिल में हमेशा रहेंगे। राजकुमार ने अपने करियर में जितनी भी फिल्में की हैं सब में उन्होंने लोगों का ध्यान खींचा है। फिर चाहे उनकी एक्टिंग हो या फिर उनके डायलॉग बोलने का दमदार अंदाज हो। राजकुमार के बार में एक बात चर्चित है कि वह अपनी शर्तों पर फिल्में करते हैं। यहां तक कि राजकुमार फिल्म के फ्लॉप होने के बाद भी वह अपनी अगली फिल्म के लिए मनमानी फीस लिया करते थे। राजकुमार ऐसा क्यों करते थे उन्होंने खुद बताया था। आइए जानते हैं राजकुमार फिल्मों के फ्लॉप होने के बाद भी अपनी फीस कम क्यों नहीं करते थे।

फिल्मों में आने से पहले पुलिस की नौकरी करते थे राजकुमार

राजकुमार का जन्म साल 1926 में हुआ था और उनका असली नाम कुलभूषण पंडित था। सिनेमा में आने के बाद उनका नाम राजकुमार हो गया था। राजकुमार ने फिल्मों में आने से पहले मुंबई पुलिस में सब इंस्पेक्टर की नौकरी करते थे और उनके एक दोस्त ने उनके अंदाज को देखते हुए उन्हें फिल्मों में काम करने की सलाह दी। राजकुमार ने अपने दोस्त की मानी और फिल्मी दुनिया की तरफ कदम बढ़ा दिए। राजकुमार ने साल 1952 में फिल्म रंगीली से बॉलीवुड डेब्यू किया था और तमाम फिल्मों में काम किया। राजकुमार फिल्मों में आए और लोगों के बीच छा गए। राजकुमार को लेकर कहा जाता है कि वह अपनी हर फिल्म की रिलीज के बाद अपनी फीस एक लाख रुपये बढ़ा देते थे। राजकुमार को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि उनकी पिछली फिल्म फ्लॉप हुई है या उनकी पॉपुलैरिटी में कोई कमी आई है। राजकुमार फ्लॉप फिल्म देने के बाद भी फीस बढ़ा देते थे।

राजकुमार ये कहकर बढ़ा देते थे फीस

राजकुमार ने एक इंटरव्यू के दौरान फ्लॉप फिल्म देने के बाद भी फीस बढ़ाने के सवाल के जवाब में कहा था, ‘मैं जो भी रोल करता हूं तो उसके साथ पूरा न्याय करता हूं। मैं ये कभी नहीं सोचता हूं कि मैं उसमें फेल हुआ हूं। फिल्में फ्लॉप हो सकती हैं लेकिन मैं नहीं।’ राजकुमार ने ये भी बताया था, ‘मेरी सेक्रेटरी ने एक बार पूछा था कि फिल्म तो फ्लॉप हो गई आप एक लाख फीस क्यों बढ़ा रहे हो तब मैंने जवाब दिया था कि फिल्म चले ना चले, मैं फेल नहीं हुआ इसलिए फीस एक लाख बढ़ेगी।’

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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