बॉलीवुड और मनोरंजन

आज भी बैठे-बैठे ही सो जाते हैं संजय दत्त, अब तक नहीं भूले जेल की वो आदत

Sanjay Dutt: संजय दत्त बॉलीवुड के सबसे चर्चित एक्टर्स में से एक हैं. संजय दत्त 40 साल से भी ज्यादा समय से बॉलीवुड में एक्टिव हैं. अब भी वे लगातार फिल्में कर रहे हैं और अपने फैंस का मनोरंजन कर रहे हैं. अपने पिता सुनील दत्त और मां नरगिस की राह पर चलते हुए संजय दत्त ने भी बॉलीवुड की राह ही चुनी

संजय दत्त ने साल 1971 की फिल्म ‘रेशमा और शेरा’ में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट काम किया था. इसके बाद साल 1981 की हिट फिल्म ‘रॉकी’ से उनका लीड एक्टर के रुप में डेब्यू हुआ. संजय अपनी फिल्मों के अलावा अपनी पर्सनल लाइफ और विवादों को लेकर भी चर्चा में रहे हैं.

जेल की हवा भी खा चुके हैं संजय दत्त

गौरतलब है कि साल 1993 के मुंबई बम ब्लास्ट के दौरान ‘संजू बाबा’ अपने घर में वैध हथियार रखने के चलते दोषी पाए गए थे. उन्हें बाद में इस केस में कोर्ट ने 6 साल की सजा सुनाई थी. ये केस काफी लंबा चला था. संजय दत्त को पुणे की यरवदा जेल में करीब 5 साल गुजारने पड़े थे.

जेल में बैठे-बैठे ही सो जाते थे संजय


संजय दत्त को जेल में सजा काटने के दौरान काफी मुश्किलों का भी सामना करना पड़ता था. संजू बाबा जेल में रहने के दौरान बैठे-बैठे ही सो जाते थे. ऐसा उनके साथ मजबूरी में होता था. इस बात का खुलासा खुद संजय दत्त ने टीवी शो ‘यारों की बरात’ पर किया था. इस शो को रितेश देशमुख और साजिद खान होस्ट करते थे.

आज भी नहीं छूटी संजय की वो जेल वाली आदत

साजिद और रितेश के शो पर संजय दत्त अजय देवगन और अभिषेक बच्चन के साथ पहुंचे थे. तब अभिषेक ने कहा था कि, संजय दत्त कभी लेटकर सोते नहीं हैं. ये बैठकर सोते हैं. साजिद ने पूछा ऐसा क्यों? तो संजय दत्त ने कहा था कि, ‘जेल में क्या होता था जब बरसात होती थी तो सेल में घुटनों तक पारी भर जाता था. उसी पानी में सोना पड़ता था. तो इसीलिए हम लोग ऐसे सोते हैं (बैठे-बैठे). फिर साजिद ने कहा कि आदत हो गई है. इस पर संजू बाबा ने कहा था कि अभी तक वैसी ही आदत है. फिर साजिद ने कहा कि वो आदत छूटी नहीं. इस पर संजू बाबा ने कहा कि नहीं.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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