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शादी में इस शख्स ने बनाई थी तापसी पन्नू की वेडिंग ड्रेस, एक्ट्रेस का खुलासा

Taapsee Pannu Wedding: बॉलीवुड एक्ट्रेस तापसी पन्नू ने इस साल मार्च में उदयपुर में लॉन्गटाइम बॉयफ्रेंड और बैडमिंटन प्लेयर मैथियास बोए से गुपचुप शादी की थी. हाल ही में तापसी ने अपनी शादी के बारे में कई सारी चीजें रिवील की. इस बारे में बात करते हुए कि सेलिब्रिटी दुल्हनों से परे उन्होंने लहंगा के बजाए शादी में सूट क्यों पहना. 

शादी में इस शख्स ने बनाई थी तापसी पन्नू की वेडिंग ड्रेस

इस पर तापसी ने खुलासा किया कि, मैंने अपना शादी का एक भी आउटफिट किसी फैशन डिजाइनर से नहीं बनवाया है. क्योंकि उनके दोस्त ने उनके सभी दुल्हन के कपड़े डिजाइन किए थे. तापसी पन्नू ने कहा, ‘मैं सिख, गुरुद्वारा शादियां देखकर बड़ी हुई हूं, इसलिए मेरे लिए शादी करने का क्लासिक आइडिया हमेशा रेड कलर की सलवार कमीज में ही था. जिसमें बॉर्डर पर किनारी वाला दुपट्टा हो. 

‘नहीं पहनना था लहंगा’

तापसी ने कहा- ये ही एकमात्र तरीका है जिससे मैं जानती हूं कि एक दुल्हन, दुल्हन की तरह दिखती है और मुझे खुद को पेस्टल कलर का लहंगा पहनना शादी जैसा नहीं लगता ना ही मैंने खुद को कभी उस तरह दुल्हन की तरह देखा है. 


फैशन डिजाइनर से कपड़े ना सिलवाने की बात पर उन्होंने आगे कहा, ‘इसलिए भी क्योंकि जब आपके साथ कोई बड़ा नाम होता है तो खबर के लीक होने की संभावना बहुत अधिक होती है और मैं इसे बहुत प्राइवेट रखना चाहती थी. तो, मेरे कॉलेज के दोस्त मणि भाटिया ने मेरे सभी आउटफिट डिज़ाइन किए और मैं भी ये ही चाहती थी. मेरी पूरी शादी में मेरे पास कोई लहंगा नहीं था क्योंकि मैं सभी फंक्शन में खूब डांस करना चाहती थी.’

तापसी ने शादी में पहने थे दादी के झुमके

शादी के फंक्शन के बारे में आगे बोलते हुए, तापसी ने कहा कि हल्दी फंक्शन के लिए उन्होंने ‘कुर्ते के साथ बहुत पुरानी पंजाबी लुंगी पहनी थी, जैसा आपने डीडीएलजे (दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे) में देखा था.’


वहीं संगीत फंक्शन के लिए, एक्ट्रेस ने बेलबॉटम-स्टाइल वाले पैंट को चुना. तो वहीं शादी के लिए तापसी पन्नू ने पारंपरिक पंजाबी सग्गी फुल पहना था, जो एक हेयर एक्सेसरी है, साथ ही एक बहुत ही हल्का हार और झुमके पहने थे जो उनकी दादी ने उनकी शादी में उनकी मां को दिए थे.

 

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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