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कितने समय बाद मोबाइल, बैंक और दूसरे पासवर्ड्स को बदल लेना चाहिए? ऐसा न करने पर ये सब हो सकता है

How to make strong Password: इस डिजिटल युग में डाटा बेहद कीमती है. जिसके पास जितना कॉन्फिडेंटिअल डाटा है उसकी धमक उतनी ज्यादा है. यदि हैकर आज बैंक सिस्टम को हैक कर उसका डेटा उड़ा लें तो फिर उनके पास समझो सबकुछ है. यानि डेटा ही इस डिजिटल युग में सबकुछ मायने रखता है. आपका पैसा, घर, निजी बातें-वीडियो या फोटो सब कुछ एक डाटा है. यदि ये गलती से किसी और के हाथ में लग जाएं तो फिर वह इसका गलत इस्तेमाल कर सकता है. डेटा सुरक्षित रहे इसके लिए पासवर्ड का स्ट्रांग होना जरुरी है. जितना स्ट्रांग और कॉन्फीडेंटिअल आपका पासवर्ड होगा उतना ही सेफ आपका डेटा रहेगा. 

स्ट्रांग पासवर्ड कैसे बनाएं?

अगर आप अपने पासवर्ड को अपना DOB, नाम, या आदि कुछ भी इस तरह से रखते हैं जो कॉमन है तो इसके हैक होने के चांसेस ज्यादा हैं क्योकि इन डिटेल्स पर हैकर सबसे पहले फोकस करते हैं. स्ट्रांग पासवर्ड के लिए अल्फान्यूमेरिक का इस्तेमाल करें. जैसे एक स्ट्रांग पासवर्ड हो सकता है – XYZ@5685ZZ78 P 

कितने समय में बदल लेना चाहिए पासवर्ड

MCafee की रिपोर्ट और साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट्स कहते हैं कि हर व्यक्ति को अपने पासवर्ड को 90 दिन या 3 महीने बाद बदल लेने चाहिए. यानि इतने समय के बाद आपको मोबाइल, बैंक, लॉकर आदि सभी चीजों के पासवर्ड बदल लेने चाहिए ताकि कोई आपके डेटा, पैसे आदि के साथ छेड़छाड़ न कर पाएं. अगर आप लम्बे समय तक पासवर्ड नहीं बदलते हैं तो जो भी इसे जानता है या कहीं आपने अपने अकाउंट को लॉगिन कर छोड़ दिया है तो वो इसका गलत फायदा उठा सकता है.

फोन का पासवर्ड बदलना भी जरुरी

फोन का पासवर्ड भी हर महीने या 2 महीने बाद बदलना जरुरी है. एक ही पासवर्ड को लम्बे समय तक रखने से ये हमारे आस-पास के लोगों को याद हो जाता है और वे हमारे डेटा का गलत तरीके से फायदा उठा सकते हैं. भले ही आपके फोन और बैंक का पासवर्ड अलग हो लेकिन आपके दूसरे डिटेल्स के जरिए कोई आपको टारगेट कर सकता है. इसलिए बेहतर है कि आप समय-समय पर पासवर्ड को बदलते रहें. 

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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