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‘स्वतंत्र वीर सावरकर’ के लिए रणदीप हुड्डा ने घटाया 26 किलो वजन इस डाइट प्लान को किया था फॉलो

Randeep Hooda: रणदीप हुड्डा इन दिनों अपनी अपकमिंग फिल्म ‘स्वतंत्र वीर सावरकर’ को लेकर सुर्खियां बटोर रहे हैं. रणदीप इस फिल्म में एक्टिंग तो कर ही रहे हैं साथ ही इस फिल्म का डायरेक्शन भी रणदीप ने ही किया है. हाल ही में फिल्म के प्रोड्यूसर आनंद पंडित ने खुलासा किया कि इस फिल्म में वीर सावरकर जैसा दिखने के लिए कैसे रणदीप हुड्डा ने अपना 26 किलो वजन कम किया.

कैसे आया सावरकर पर फिल्म बनाने का आइडिया
ईटाइम्स से हुई बातचीत में आनंद पंडित में बताया वो काफी समय से वीर सावरकर को मानते हैं. उनके अनुसार वीर सावरकर राजनीति का शिकार हो गए थे और उन्हें उनका हक नहीं मिला. एक दिन संदीप सिंह रणदीप हुड्डा के साथ उनके ऑफिस आए और उन्हें इस पर फिल्म बनाने का आइडिया दिया. साथ ही ये भी बात हो गई कि उन्हें सही लगे तो वो बतौर प्रोड्यूसर फिल्म में शामिल हो सकते हैं. फिर क्या था, बातचीत हुई और फिल्म बनाने का फैसला भी.

रणदीप हुड्डा ने 4 महीने खजूर और दूध पर बिताए
जब आनंद पंडित से पूछा गया कि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रणदीप हुड्डा ने इस फिल्म के लिए 18 किलो वजन कम किया है. तब आनंद बोले, ’18 नहीं उसने इस रोल के लिए 26 किलो घटाया है. जब वो मेरे ऑफिस आया था तब उसका वजन 86 किलो था. वो उसी दिन से इस किरदार में ढलने लगा था और आज तक वैसा ही है. वो कोई कमी नहीं छोड़ना चाहता था. उसने 4 महीने तक सिर्फ एक खजूर और एक गिलास दूध ही पीया. जब तक शूटिंग खत्म नहीं हो गई. इतना ही नहीं, उसने बाल भी अपने उसी जगह से हटाए जहां पर वीर सावरकर के नहीं थे.’

सावरकर के पोते से मिले रणदीप हुड्डा
आंनद पंडित ने आगे बताया, ‘रणदीप हुड्डा ने कोई प्रोस्थेटिक यूज नहीं किया. हमने महाबलेश्वर के पास के गांव में शूटिंग की. मेरे पास आने से पहले रणदीप ने वीर सावरकर के पोते से इस मूवी के लिए इजाजत ली थी, लेकिन मुझे नहीं लगता कि परमिशन की जरूरत थी. क्योंकि सारी जानकारी पब्लिक डोमेन में उपलब्ध है. कल को अगर हम गांधी जी पर फिल्म बनाएं तो हमें परमिशन की जरूरत नहीं होगी.’

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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