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बिहार कांग्रेस में विधायकों का बगावती तेवर जारी, प्रतिमा दास ने अखिलेश सिंह के खिलाफ खोला मोर्चा

पटना: लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) को लेकर सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी तैयारी में जुटे हैं, वहीं, बिहार प्रदेश कांग्रेस (Congress) के अंदर ही घमासान मचा हुआ है. हाल ही में कांग्रेस के दो विधायक बीजेपी के साथ चले गए हैं. अब, महिला विधायक प्रतिमा दास (Pratima Das) ने अपने ही प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह (Akhilesh Prasad Singh) के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. राजपाकर की विधायक प्रतिमा दास ने शनिवार को पत्रकारों से चर्चा करते हुए विधान परिषद की रिक्त हुई 11 सीटों पर होने वाले चुनाव में महागठबंधन में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिलने पर भड़क गई. 

‘वह केंद्रीय नेतृत्व को भी अंधेरे में रखते हैं’

प्रतिमा दास ने कहा कि जब कांग्रेस के चार विधायक होते थे तब भी कांग्रेस के लोग एमएलसी बनते थे, आज तो 17 विधायक हैं. उन्होंने अपने अध्यक्ष पर आरोप लगाया कि वह केंद्रीय नेतृत्व को भी अंधेरे में रखते हैं. बिहार के प्रदेश अध्यक्ष अधिकांश समय दिल्ली में ही रहते हैं. ऐसी स्थिति में उनसे आम कार्यकर्ता कैसे मिल सकता है. वह विधायक तक का फोन नहीं उठाते हैं. उन्होंने किसी अन्य व्यक्ति को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग कर दी है.

महागठबंधन की ओर से पांच उम्मीदवार उतारे गए हैं

बता दें कि बिहार विधान परिषद की रिक्त होने वाली 11 सीटों के होने वाले चुनाव में महागठबंधन की ओर से पांच उम्मीदवार उतारे गए हैं. इनमें आरजेडी के चार और भाकपा-माले के एक उम्मीदवार हैं, जबकि महागठबंधन में शामिल कांग्रेस को स्थान नहीं मिला है. सूची में आरजेडी की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, पूर्व मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी, उर्मिला ठाकुर और सैयद फैसल अली को प्रत्याशी बनाया गया है. महागठबंधन ने अपना पांचवां प्रत्याशी भाकपा (माले) के शशि यादव को बनाया है.

वहीं, बिहार में विधान परिषद की रिक्त होने वाली 1 सीटों पर चुनाव होना है, जिसकी प्रक्रिया शुरू हो गई है. 21 मार्च को इन सीटों के लिए मतदान होगा. सीटों पर निर्वाचित सदस्यों का कार्यकाल मई में खत्म हो रहा है.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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