बॉलीवुड और मनोरंजन

विलेन नहीं, हीरो बनना चाहते थे जीवन, पढ़ें बॉलीवुड के ‘नारद’ की जिंदगी का अफसाना

Jeevan Unknown Facts: जिक्र 70 और 80 के दशक की फिल्मों के विलेन का हो और जीवन का नाम कोई भूल जाए, ऐसा होना लाजिमी ही नहीं है. 24 अक्टूबर 1915 के दिन श्रीनगर में जन्मे जीवन का असली नाम ओंकार नाथ धार था. जब वह पैदा हुए, तब उनकी मां का निधन हो गया था. वह बचपन से ही एक्टिंग की दुनिया में आना चाहते थे, लेकिन उनके परिवार वाले इसके लिए तैयार नहीं थे. दरअसल, जीवन का परिवार काफी बड़ा था. वह अपने 24 भाई-बहन में सबसे छोटे थे. जब जीवन महज तीन साल के थे, उस वक्त उनके पिता का भी निधन हो गया था. 

सपना पूरा करने के लिए छोड़ा था घर

जब घरवाले उनके एक्टिंग के सपने को पूरा करने के लिए राजी नहीं हुए तो जीवन ने घर छोड़ दिया. वह भागकर मुंबई पहुंच गए. कहा जाता है कि उस वक्त उनकी जेब में महज 26 रुपये थे. उस वक्त उनकी उम्र महज 18 साल थी. करियर के शुरुआती दिनों में जीवन को काफी संघर्ष करना पड़ा. उन्हें एक स्टूडियो में नौकरी मिली, जो उस जमाने के जाने-माने डायरेक्टर मोहनलाल सिन्हा का था. 

एक्टिंग की दुनिया में ऐसे हुई जीवन की एंट्री

बता दें कि कुछ वक्त दौरान मोहनलाल को जीवन की इच्छा का पता चला. ऐसे में उन्होंने जीवन को अपनी फिल्म ‘फैशनेबल इंडिया’ में रोल दिया. इसके बाद जीवन को कई फिल्मों में काम करने का मौका मिला. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जीवन हीरो बनना चाहते थे, लेकिन कुछ वक्त बात ही उन्हें समझ आ गया कि हीरो बनना आसान नहीं है और उनका चेहरा भी हीरो लायक नहीं है. ऐसे में उन्होंने विलेन बनने पर अपना फोकस सेट कर लिया. 

60 से ज्यादा फिल्मों में बने नारद

गौरतलब है कि जीवन ने अपने जमाने की सभी धार्मिक फिल्मों में नारद मुनि का किरदार निभाया. आंकड़ों पर गौर करें तो उन्होंने 60 से ज्यादा फिल्मों में नारद मुनि का किरदार निभाया. जीवन ने एक बार खुद कहा था कि अगर स्वर्ग से नारद मुनि आ जाएं तो उन्हें अपना डुप्लिकेट मानेंगे. बता दें कि 10 जून 1987 के दिन उनका निधन हो गया था.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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