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‘द केरला स्टोरी’ को लेकर हो रहे विवाद पर बोलीं कंगना रनौत- ‘फिल्म पर बैन लगाना संविधान का अपमान

Kangana Ranaut On The Kerala Story: सुदीप्तो सेन (Sudipto Sen) की फिल्म द केरला स्टोरी (The Kerala Story) बॉक्स ऑफिस पर छप्परफाड़ कमाई कर रही है. ये फिल्म 200 करोड़ क्लब में शामिल हो चुकी है. वहीं, रिलीज से पहले से ही ‘द केरला स्टोरी’ को लेकर विवाद जारी है. कुछ लोग इस फिल्म को सपोर्ट कर रहे हैं, तो कुछ लोगों का कहना है कि ये एक प्रोपेगेंडा है. अब इस मामले में कंगना रनौत (Kangana Ranaut) ने अपना रिएक्शन दिया है.

फिल्म पर बैन लगाना संविधान का अपमान

न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार कंगना रनौत ने कहा, ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा पास की गई फिल्म द केरला स्टोरी पर कुछ राज्यों में प्रतिबंध लगाया जाना संविधान का अपमान है. कंगना रनौत ने रिपोर्टर्स से कहा, ‘जिस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने पास कर दिया है, उस पर बैन लगाना संविधान का अपमान है. द केरला स्टोरी को कुछ राज्यों में बैन किया जाना बिल्कुल गलत है.’ 

बॉलीवुड इंडस्ट्री से लोगों को रहती है शिकायत

एक्ट्रेस ने बताया कि लोगों को बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री से शिकायत रहती है कि जिस तरह की फिल्में वे देखना चाहते हैं, वैसी फिल्में नहीं बनाई जाती हैं. कंगना रनौत ने कहा, ‘जब द केरला स्टोरी जैसी फिल्म बनती है, तो लोगों की शिकायत दूर हो जाती है. जिन फिल्मों को लोग देखना पसंद करते हैं, उससे फिल्म इंडस्ट्री को फायदा ही होता है.’

सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म पर लगे बैन पर लगाई रोक

मालूम हो कि पश्चिम बंगाल सरकार ने समुदायों के बीच तनाव को देखते हुए 8 मई को फिल्म द केरला स्टोरी (The Kerala Story) पर बैन लगा दिया था. तमिलनाडु के सिनेमाघरों ने कानून-व्यवस्था की स्थिति और खराब दर्शकों की संख्या का हवाला देते हुए इसकी स्क्रीनिंग बंद करने का फैसला किया था. हालांकि, पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में फिल्म पर प्रतिबंध लगाने के पश्चिम बंगाल सरकार के आदेश पर रोक लगा दी और तमिलनाडु से फिल्म देखने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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