बॉलीवुड और मनोरंजन

पहली फिल्म से चमकी किस्मत, फिर लगा ऐसा ग्रहण कि 10 साल से हिट नहीं हुई इस एक्टर कोई मूवी

Star Kid Flop Career: बॉलीवुड में हर किसी की किस्मत चमक जाए और वह हिट हो जाए या मेगास्टार बन जाए, यह मुमकिन नहीं. कई एक्टर्स तो स्टारकिड होकर भी फिल्म इंडस्ट्री में वो मुकाम हासिल न कर पाए जिसके शायद उन्होंने ख्वाब सजाए थे. आज हम आपको ऐसे ही एक स्टारकिड के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका पूरा खानदान बॉलीवुड से ताल्लुक रखता है, इसके बावजूद बॉक्स ऑफिस पर उनका सिक्का न चल सका.

हम जिस एक्टर की बात कर रहे हैं उसने साल 2012 में एक्ट्रेस परिणीति चोपड़ा के साथ अपना बॉलीवुड डेब्यू किया था. इस स्टारकिड की पहली फिल्म हिट रही थी. जी हां, हम बात कर रहे हैं फिल्म मेकर बोनी कपूर के बेटे अर्जुन कपूर की, जिन्होंने फिल्म ‘इशकजादे’ से बॉलीवुड में एंट्री ली थी. उनक इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 45.73 करोड़ रुपए कमाए थे और हिट साबित हुई थी. इस फिल्म ने अर्जुन कपूर को रातोंरात फेमस कर दिया था.

यह फिल्में रहीं फ्लॉप!
पहली फिल्म से नाम कमाने वाले अर्जुन कपूर ने साल 2013 में फिल्म ‘ऑरेंगजेब’ की, जो बुरी तरह पिट गई. इसके बाद उनकी 2014 में रिलीज हुईं फिल्में ‘गुंडे’ सेमी हिट तो ‘2 स्टेट्स’ हिट साबित हुई. इसके बाद से उनकी फिल्में ‘तेवर’, ‘नमस्ते इंगलैंड’, ‘पानीपत’, ‘संदीप और पिंकी फरार’ जैसी फिल्में फ्लॉप लिस्ट में शामिल हो गईं.  इस साल अर्जुन की दो फिल्में ‘कुत्ते’ और ‘द लेडी किलर’ रिलीज हुईं. जहां 4.65 करोड़ रुपए की कमाई के साथ ‘कुत्ते’ फ्लॉप हुई तो वहीं महज एक लाख रुपए कमाकर ‘द लेडी किलर’ बड़ी डिजास्टर साबित हुई.


10 सालों से एक हिट के लिए तरस रहे अर्जुन!
अर्जुन कपूर का बॉक्स ऑफिस रिकॉर्ड देखते हुए साफ है कि एक्टर पिछले 10 सालों से एक हिट के लिए तरस रहे हैं. अब एक्टर ‘मेरी पत्नी का रीमेक’ और रोहित शेट्टी की ‘सिंघम अगेन’ में नजर आएंगे. ऐसे में देखना यह है कि उनकी अपकमिंग फिल्में बॉक्स ऑफिस पर कमाल दिखा पाती हैं या नहीं.

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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