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Mark Zuckerberg ने बनवाई अपनी पत्नी की मूर्ति, साइकोलॉजिस्ट ने बताया खतरे की घंटी

Mark Zuckerberg: मंगलवार को मेटा (Meta) के सीईओ मार्क ज़करबर्ग (Mark Zuckerberg) ने अपनी कॉलेज की प्रेमिका और 12 साल की पत्नी, प्रिसिला चान, को एक उपहार दिया है. इन्होंने अपनी पत्नी की 7 फुट ऊंची मूर्ती बनवाई है. साथ ही ज़करबर्ग ने अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर फोटो के कैप्शन पर लिखा है कि, “अपनी पत्नी की मूर्तियां बनवाने की रोमन परंपरा को वापस ला रहा हूं,” इसमें चान एक मग से चुस्की लेते हुए और नीले-चांदी के रंग की विशाल मूर्ति के पास पोज देते हुए दिख रही हैं. चूंकि इनकी शादी की सालगिरह मई में है और चान का जन्मदिन फरवरी में आता है, इसलिए यह उपहार किसी विशेष अवसर पर आधारित नहीं लगता है.

साइकोलॉजिस्ट ने दिया कमेंट

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मैसाचुसेट्स की एक क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट, इसाबेल मोरली, जो कपल्स थेरेपी में विशेषज्ञता रखती हैं, ने कहा कि ऐसा भव्य उपहार एक चेतावनी का संकेत भी हो सकता है. मोरली ने कहा कि महंगे उपहार हमेशा समान महत्व नहीं रखते, खासकर उन लोगों के लिए जो अत्यधिक धनी हैं.

बताते चलें कि फोर्ब्स ने 15 अगस्त को ज़करबर्ग की संपत्ति को $169 बिलियन से अधिक बताया था. लेकिन मोरली के अनुसार उपहार देने का एक विशेष उद्देश्य होता है, चाहे वह कितना भी अमीर इंसान ही क्यों न हो. इसके साथ ही मोरली ने कहा कि “कुछ लोग इन उपहारों का उपयोग बुरे व्यवहार या यहां तक कि अपमानजनक व्यवहार के बाद सुधारने के लिए करते हैं.


Instagram पर हैं 14.5 मिलियन फॉलोअर्स

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ज़करबर्ग ने मूर्ति की एक फोटो इंस्टाग्राम पर पोस्ट की जहां उनके 14.5 मिलियन फॉलोअर्स हैं. यहां पर इस पोस्ट पर लोग कई प्रतिक्रिया दे रहे हैं. इस पोस्ट पर भी मोरली ने कहा कि “क्या यह वास्तव में उनके लिए अपने गहरे प्रेम और आभार को दिखाने के लिए था या यह उन्हें दूसरों के सामने अच्छा दिखाने और उनसे एक विशेष स्नेही प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए था.”

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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