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पाकिस्तान पर फिर भड़के जावेद अख्तर, उर्दू को बताया भारत की भाषा

Javed Akhtar on Urdu: बॉलीवुड के बेहद फेमस लिरिसिस्ट जावेद अख्तर इन दिनों चर्चा में हैं। हाल ही में जावेद अख्तर ने पाकिस्तान को आईना दिखाया था। दरअसल वो कुछ दिनों पहले ही पाकिस्तान गए थे जहां उन्होंने 26/11 मुंबई आतंकवादी हमलों के बारे में बात की थी। साथ ही जावेद अख्तर ने आतंकियों को पनाह देने के लिए पाकिस्तानी सरकार को खरी खोटी भी सुनाई थी। इस बीच जावेद अख्तर का एक बयान सामने आया है। उन्होंने एक इवेंट में कहा कि उर्दू को पाकिस्तान या मिस्र की नहीं है, बल्कि ‘हिंदुस्तान’ की भाषा बताई है। इसके साथ ही जावेद ने कई और बातें कही हैं। Also Read – Satish Kaushik Last Rites: सतीश कौशिक के घर पहुंचे रणबीर कपूर समेत ये सितारे, अभिषेक बच्चन ने अनुपम खेर को संभाला

जावेद अख्तर ने उर्दू भाषा को लेकर कही ये बात

हाल ही में गीतकार ने अपनी पत्नी शबाना आजमी के साथ शायराना-सरताज नाम की एक उर्दू शायरी एल्बम लॉन्च की थी। इस दौरान जावेद अख्तर ने कहा, ‘उर्दू किसी और जगह से नहीं आई है। यह हमारी अपनी भाषा है। यह हिंदुस्तान के बाहर नहीं बोली जाती है। पाकिस्तान भी भारत से विभाजन के बाद अस्तित्व में आया, पहले यह केवल भारत का हिस्सा था। इसलिए भाषा हिंदुस्तान के बाहर नहीं बोली जाती है।’ जावेद अख्तर के मुताबिक, उर्दू के विकास में पंजाब का बहुत बड़ा रोल है। Also Read – Satish Kaushik Death: निधन से एक दिन पहले रंगों में डूबे हुए थे सतीश कौशिक, इन कलाकारों को खूब लगाया गुलाल

अपने बेबाक अंदाज के लिए जाने जाते हैं जावेद अख्तर

जावेद अख्तर ने पंजाबी भाषा को लेकर कहा, ‘पंजाब का उर्दू में बहुत बड़ा योगदान रहा है और यह भारत की भाषा है। लेकिन आपने इस भाषा को छोड़ क्यों दिया? पार्टीशन की वजह से? पकिस्तान की वजह से? उर्दू को अटेंशन की जरूरत है। पहले सिर्फ हिन्दुस्तान हुआ करता था पकिस्तान बाद में हिन्दुस्तान से अलग होकर बना’ बताते चलें कि जावेद अख्तर अपने बेबाक अंदाज के लिए जाने जाते हैं। वो ट्विटर पर काफी एक्टिव रहते हैं। जावेद अख्तर हर मुद्दे पर अपनी राय रखते हैं।

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Aslam Khan

हर बड़े सफर की शुरुआत छोटे कदम से होती है। 14 फरवरी 2004 को शुरू हुआ श्रेष्ठ भारतीय टाइम्स का सफर लगातार जारी है। हम सफलता से ज्यादा सार्थकता में विश्वास करते हैं। दिनकर ने लिखा था-'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।' कबीर ने सिखाया - 'न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर'। इन्हें ही मूलमंत्र मानते हुए हम अपने समय में हस्तक्षेप करते हैं। सच कहने के खतरे हम उठाते हैं। उत्तरप्रदेश से लेकर दिल्ली तक में निजाम बदले मगर हमारी नीयत और सोच नहीं। हम देश, प्रदेश और दुनिया के अंतिम जन जो वंचित, उपेक्षित और शोषित है, उसकी आवाज बनने में ही अपनी सार्थकता समझते हैं। दरअसल हम सत्ता नहीं सच के साथ हैं वह सच किसी के खिलाफ ही क्यों न हो ? ✍असलम खान मुख्य संपादक

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